आधार-
जैसे ही तीनों कर्मचारी अन्दर गए बहार भीड़ का ऐसा रेला आना शुरू हुआ लगा कि यहाँ कोई सुपरहिट फिल्म की टिकेट खिड़की खुल गयी हो !आदमी के ऊपर आदमीं चढाने लगा.किसे के कन्धों पर कोई भी चढ़ा  जा रहा है. ऐसे में चीख पुकार मचनी स्वाभाविक थी. लिहाजा लोग चीखे भी मगर उनकी वहाँ सुननेवाला कोई नहीं था. मैं अपने चार पहिये के स्कूटर पर बैठा -बैठा सिर्फ देखा  ही सकता था. क्योंकि जब वहाँ अच्छे -अच्छों को पसीने छूट रहे हों तो मेरे जैसा आदमीं क्या कर सकता था ?
लोगों को चीखता हुआ देखकर जो पीड़ा हुए उसको तो वही महसूस कर सकता है जिसका बेटा वहाँ लाइन में लगा हो. उसको महसूस हो सकता है जिसकी बेटी लेने में लगी हो. जो लोग ऊपर चढ़ रहे हैं उनको तो सिर्फ अपना स्वार्थ ही नजर आ रहा था. एक शिक्षित इंसान इतना गैर जिम्मेदार हो सकता है मैं यह देख कर दांग रह गया. लाइन में लगे लोगों की पीड़ा और उनकी चीखों को सुननेवाला वहाँ कोई नाहे दिखा. किसी ने उन नौजवानों से यह भी नहीं पूंछा कि भैया जी आप ये क्या कर रहे हैं?
जो भी वहाँ खडा था बस उसको अपना ही स्वार्थ दिखाई दे रहा था. महज एक सेकेण्ड में तीन घंटों से लगी लाइन टूट जायेगी यह तो किसी ने सोचा ही नहीं था . जब महिलाओं के चीख बर्दास्त के बहार होने लगी तो मैंने वहाँ से चले जाने में ही भलाई समझी . लिहाजा मैंने गाडी स्र्तार्ट की और घर की और चल दिया.

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