आरपी. सिंह की दो टूक-


खंभा तो आखिर खंभा होता है साहब... वो तीसरा हो या चौथा.... वो बोलता नहीं बस मूक बना खड़ा रहता है......ठीक वैसे ही जैसे उत्तर प्रदेश में खड़ा है। एक नेता ने अब तो मारे जाने वाले पत्रकारों की बोली भी लगा दी। एक पत्रकार की मौत की कीमत तीस लाख और एक परिजन को नौकरी देकर उपकृत किया जा रहा है। तीन कौड़ी की सियासत ने लोगों को सांसत में डाल कर विरासत हड़पना जारी रखा है। सरकारी खजाने पर जुगाली करने को ये अपना जन्म सिध्द अधिकार समझने लगे हैं। इनको जब तक इनकी जात और औक़ात याद नहीं दिलाई जाएगी कुछ होने से रहा। देश की युवा शक्ति को ये बात समझनी होगी और उनको संगठित होकर ऐसी ताकतों की मुख़ालफ़त करनी होगी। वर्ना हम तो यही कहेंगे कि-
खुशी से आग लगाओ कि इस मोहल्ले में, मेरा मकां ही नहीं है तुम्हारा घर भी है।।

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