बँटवारा

मुझे सिर्फ एक शब्द ने हर बार आहत किया और वो है बँटवारा, देश का बंटवारा, काल का बंटवारा, राज्य का बंटवारा, जिले का बंटवारा,घर का बंटवारा, समाज का बंटवारा, और अब तो हद ही हो गई। सुनाने में आ रहा है की कुछ लोगों ने पत्रकारों का भी बंटवारा कर लिया है। बुद्धिजीवी भी बाँट गए? वाह क्या बात है? चलो इसी बहाने अखबार और इलेक्ट्रानिक चैनल के मालिकों की चांदी हो जायेगी। मणिसाना वेतन बोर्ड के नाम पर पसर सन्नाटा अब मजीठिया वेतन बोर्ड को भी निगल रहा है। और हम बंटवारे में मगन हैं। होना तो ये चाहिए था की जिस शिद्दत के साथ हम दूसरों की मांगें उठाते हैं उसी शिद्दत से पत्रकारों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी एकजुट होते-- मगर यहाँ तो नज़ारा ही कुछ और देखने को मिल रहा है?--
खैर-- खुशी से आग लगाओ की इस मोहल्ले में, मेरा मकां ही नहीं है तुम्हारा घर भी है!!

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