आर.पी. सिंह की दो टूक



कारपोरेट घरानों के पोषित पत्रकारों से एक सीधा सा सवाल...क्या मजीठिया आयोग की रपट खबर नहीं है? अगर है तो किसने कितने मिनट का समय दिया? एक इलेक्ट्रानिक मीडिया हाउस ने जब थोक में 250 पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाया तो उसे कितने मिनट का समय दिया गया? क्या ये समाचार नहीं थे? क्या यही मीडिया की पारदर्शिता है अगर हाँ तो फिर नमन है ऐसी गई बीती पत्रकारिता को!

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