समझ में आए तो मजे ले लेना-


व्यंग्य-
जनता के पैसों की जुगाली करने वाले किसी को गाली दें शोभा नहीं देता। हद हो गई अलाली करने वाले लोग किसी को नहीं करने दे रहे हैं हमाली, बजवाकर आम आदमी से ताली किए जा रहे हैं खजाना खाली, लील गए सड़कें और नाली, जाल में भी नहीं फंसते ये जाली। इनकी आस्तीनो में पलने वाले खटमलों में से जिसको भी छू दो फट जाता है और निकलने लगती है बेनामी संपत्ति। इस पर भी सबसे बड़ा क्लेश कि बांटते हैं उपदेश। वोटों के याचक अब बनना चाहते हैं कथावाचक।
ऐसे संकट काल और चाल के अकाल में अपने भाल को सुरक्षित बचाए रखने के लिए निहायत जरूरी है कि संतों जागत नींद न कीजै। जो सोए वो खोए और सौ साल तक रोए, काटेंगे वही जो हैं बोए। फिर समझ में नहीं आएगा कि किसको दबाएं और किसे टोएंंं.... ओए...ओए....ओए...ओए।
बाकी अगली बार तब तक के लिए जय...जयकार।

निखट्टू

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