कलम का क़लम होना तय

आरपी. सिंह की दो टूक

सत्ता बनीं पत्रकारिता की सौत और उसी की वजह से हुई पत्रकारिता की मौत..... इतने पर भी कुछ लोग गर्दन ऐंठे हैं कुंडली मार कर उसकी लाश पर बैठे हैं। उसकी लाश में भी अवसर तलाश रहे हैं। कहीं खुद फंस रहे हैं  तो कहीं किसी और को फांस रहे हैं। नेता नायक हो गए, कुछ कवि सत्ता के गलियारों के गायक हो गए, कुछ चापलूस पत्रकारिता के लायक हो गए। ऐसे में कलम का क़लम होना तो तय है। न इसकी किसी को चिंता है और न भय है, क्योंकि आज कल हर समस्या का हल तिजोरी  से निकलता है।

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