गरीबी का मजाक


जिस देश में गांवों में २२ रुपये और शहरों में २८ रुपये दैनिक खर्च करनेवाला गरीबी रेखा के नीचे नहीं आता.क्या उस देश में एक अधिकारी को लाखों रुपये माहवार वेतन मिलना चाहिए? क्या उस देश का मंत्री हर माह डेढ़ लाख से ज्यादा रुपये का वेतन लेने का अधिकारी है ? जो आदमी पूरे एक साल में गरीबी का सही आंकड़ा तक नहीं पेश कर पाया क्या उसको योजना आयोग अध्यक्ष के पद पर बना रहना ठीक है? क्या इसके बाद भी आप मानते हैं की भारत में लोकतंत्र ज़िंदा है?मजेदार बात तो यह है की ये सब करनेवाले बड़े-बड़े विश्वविद्द्यालयों की डिग्री लेकर आये हैं. सरकार के रजिस्टर में ये लोग उच्च शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं. यह तो गाँव का एक अनपढ़ भी आपको बता देगा की ये आंकड़ा ठीक नहीं है. अगर ऐसा है तो फिर मोंटेक सिंह को चाहिए की वे चार महीने उसे रुपये में ज़िंदा रहकर दिखा दें.

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव