वाणी वन्दना
मां मेरे गीतों को तुम एक नूतन स्वर दो ,
भावों की भाषा को शब्दों की कुछा नई लहर दो .
जिसमे गोते लगा खोज लूं अलंकार के मोती,
मनमानी स्वच्छंद उड़े लय की वह श्वेत कपोती ,
ताल रिदम सरगम संग लेकर गूंजें मधुर अलापें ;
नाल पखावज अरु मृदंग पर पड़ें जोर की थापें .
गरज उठें नक्कारे डंके तुरही की आवाजें ,
साक्षात शारदा मंच पर आकर यहाँ विराजें.
फिर मां की सेवा में गूंजे खुशियों की शहनाई ,
उठे चतुर्दिक घोष एक ही जयतु शारदे माई ..
मां हिंसा अज्ञान द्वेष का दूर करू अंधियारा ,
अखिल विश्व में व्याप्त पुनह हो जाए भाई चारा ,
मां " कपूत" रस के अक्षत से लगा चाँद की रोली ,
यही मांगता है मांगन फैलाए अपनी झोली..
विश्व शान्ति से रहे किसी को नहीं किसे से भय हो ,
हे वीणा की देवी तेरी जय हो जय हो जय हो **
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कपूत प्रतापगढ़ी
रायपुर छत्तीसगढ़ .

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