करजा लेकर मरजा

लोकतंत्र का एक चेहरा आज आपको और दिखाते हैं। आपको जानकार हैरत होगी की भारत के हर नागरिक पर 14687 रुपए का विदेशी कर्ज है। दुनियां के 20 कर्जदार देशों की सूची में हमारे देश का चौथा नंबर है। वर्ष 2012 में देश पर 3653.15 करोड़ डॉलर का विदेशी कर्ज लदा है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने माना  था की गरीबों को केंद्र से जारी हुए एक रुपये में से उसको महज 10 पैसे ही मिलते हैं। लोक पर कर्ज और तंत्र  जप रहा है तनख्वाह बढ़ने का मन्त्र। सेवा को क़ानून की किताबों के बीच में दबाकर ये लोग जमकर मेवा खा रहे हैं। आम नागरिक को आम के बदले गुठली भी नसीब नहीं होती। अधिकार माँगने पर लाठियाया जाता है, न्याय माँगने पर तारीखें, सुरक्षा माँगने पर गालियाँ  और लात, चिकित्सा माँगने पर घुड़कियाँ, खाना माँगने पर खरी-खोटी के सिवाय कुछ भी नसीब नहीं होता। उसकी नसीब में तो बस यही लिखा है की करजा लेकर मरजा। तो वहीं तंत्र के लोग बंदरबांट कर ठाठ से ऐश कर रहे हैं। उसके बाद भी हमें सपनों के शीशमहल दिखाए जा रहे हैं। क्या करें भ्रष्टाचार का अचार जो इनके मुंह लग गया है?

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