भावों के खण्डहर


बेढंगा मंज़र लगता है, भाव उन्हें खण्डहर लगता है।
कुर्ता शायर जैसा है पर, हर पन्ना बंजर लगता  है।।
नोंक कलम की तिरछी क्या की, हर्फ़-हर्फ़ हंटर लगता है ।
बहरें बौनी छंद छिछोरे ,अलंकार पत्थर लगता है।।
रस कब का बस बोल चुका  है,तुक इनको बेघर लगता है।
यति गति दुर्गति भोग रही है, कवि "कपूत" जोकर लगता है।।

Comments

रस कब का बस बोल चुका है,तुक इनको बेघर लगता है।
यति गति दुर्गति भोग रही है, कवि "कपूत" जोकर लगता है।।


Bahut sundar, badhai
Kaput bhatkav said…
हार्दिक आभार मेरे भाई .....नमन है आपको !

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