कब तक पिसेगा ये किसान

अब आइएएस बनाने के लिए ईमानदारी की भी परीक्षा देनी होगी। सवाल तो ये है की  टेस्ट के बाद वो अधिकारी पूरी जिन्दगी ईमानदार बना रहेगा क्या? अगर ऐसा होता तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। मगर यहाँ तो लोग कहते कुछ और हैं और करते कुछ और। यहाँ घोषणाएँ तो होती हैं मगर क्रियान्वयन नहीं। सरकारी रजिस्टरों में झूठे आंकड़े दर्ज कर देश की सबसे बड़ी संस्था यानि संसद को गुमराह किया जा रहा है, और कानून सर नीचा किये पैर के अंगूठे से जमीन खुरच रहा है। आम आदमीं सरकार की और उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है और वो लोग अपना-अपना बैंक बैलेंस बढाने  और विदेशी यात्राओं के मजे लूटने में लगे हैं। भारत गोया देश नहीं किसी अंधे की गाय हो गया है जिसकी जितनी मर्जी आ रही है दुह ले रहा है। मजेदार बात तो ये की इनमें अब तो शर्म नाम की भी कोई चीज नहीं बची है। बड़ी बेशर्मी से देश की महापंचायत में सर उठाकर गर्व  से कहते हैं की इसकी जांच कराई जायेगी। जो भी दोषी होगा उसको बख्सा नहीं जाएगा। क्या मुझ बेवक़ूफ़ को कोई बताएगा की आज तक हुए बड़े -से बड़े घोटालों के कितने आरोपियों को सजा सुनाई  गई है।बस यही अंतर है यहाँ आम और ख़ास में-- एक गरीब अगर किसी का सौ रुपये भी  चुरा ले तो पुलिस उसकी हड्डियां तोड़ डालती है। मगर जो अरबों का वारा-न्यारा कर देता है वो मौज से हेलीकाप्टर में घूमता है और अवाम पर ही नहीं उस पुलिस पर भी रंग जमता है और उसको पुलिस सैल्यूट ठोंकती है।अदालत उसको सजा के बजाये देती है तारीखें।भारत कृषि प्रधान देश इसलिए है क्योंकि यहाँ के तंत्र ने किसान को पिसान यानि आंटा बना डाला  है। यानि जैसे चक्की में गेहूं पिस कर आंटा हो जाता है उसी तरह लोकतंत्र की चक्की में किसान पिस रहा है मगर कब तक पिसेगा ये नहीं जानता।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव