रसूखदार गए लील दाउदपुर की झील
आर.पी. सिंह की दो टूक-
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश जिला अपनी गोखुरी आकृति वाली झीलों को लेकर मशहूर है। कानून के टायर में ठोंकर कर तर्कों की कील, जिले की सबसे बड़ी दाउदपुर झील को वहां के रसूखदार गए लील, जनता कर रही बैड फील तो सरकार रही है प्याज छील। पहले बाहर से आने वाली प्रवासी चिड़ियों को मार कर खाया, फिर भी पेट नहीं भरा तो मछलियां मारी उससे भी पेट नहीं भरा तो पूरी झील ही लील गए। इन लीलाधरों की लीला में यहां के एक ऐसे सांसद का विशेष योगदान रहा जो कुछ घरों में बाढ़ का पानी जाने से बचाने के नाम पर एक नहर खोद कर इस झील की हत्या कर डाली। जहां कभी कमल के फूल खिला करते थे वहां खेत बन गए। जहां पक्षी कलरव करते थे वहां मैदान हो गया। पेड़ ही नहीं तो पक्षी कहां बैठेंगे।
राज्य के इतिहासकार, विद्वान सो रहे हैं। लोग पानी के लिए रो रहे हंै। महज दो प्रतिशत लोग मौज कर रहे हंै और 98 प्रतिशत उनको ढो रहे हैं। मजेदार बात कि यहां हर कोई इसको अपने -अपने एंगल से तोलता है,इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कोई कुछ नहीं बोलता है। हम तो बस यही कहेंगे कि-
खुशी से आग लगाओ कि इस मुहल्ले में,
मेरा मकां ही नहीं है तुम्हारा घर भी है।
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश जिला अपनी गोखुरी आकृति वाली झीलों को लेकर मशहूर है। कानून के टायर में ठोंकर कर तर्कों की कील, जिले की सबसे बड़ी दाउदपुर झील को वहां के रसूखदार गए लील, जनता कर रही बैड फील तो सरकार रही है प्याज छील। पहले बाहर से आने वाली प्रवासी चिड़ियों को मार कर खाया, फिर भी पेट नहीं भरा तो मछलियां मारी उससे भी पेट नहीं भरा तो पूरी झील ही लील गए। इन लीलाधरों की लीला में यहां के एक ऐसे सांसद का विशेष योगदान रहा जो कुछ घरों में बाढ़ का पानी जाने से बचाने के नाम पर एक नहर खोद कर इस झील की हत्या कर डाली। जहां कभी कमल के फूल खिला करते थे वहां खेत बन गए। जहां पक्षी कलरव करते थे वहां मैदान हो गया। पेड़ ही नहीं तो पक्षी कहां बैठेंगे।
राज्य के इतिहासकार, विद्वान सो रहे हैं। लोग पानी के लिए रो रहे हंै। महज दो प्रतिशत लोग मौज कर रहे हंै और 98 प्रतिशत उनको ढो रहे हैं। मजेदार बात कि यहां हर कोई इसको अपने -अपने एंगल से तोलता है,इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कोई कुछ नहीं बोलता है। हम तो बस यही कहेंगे कि-
खुशी से आग लगाओ कि इस मुहल्ले में,
मेरा मकां ही नहीं है तुम्हारा घर भी है।
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