दाउदपुर झील की मौत का मातम

आरपी. सिंह की दो टूक-

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की दाउदपुर झील जहां कभी धान की दो फसलें होती थीं। मछली बेंचकर तमाम परिवारों का गुजारा होता था। आसपास के लोग भी मछलियों का शिकार किया करते थे। गन्ने की अच्छी पैदावार हुआ करती थी। पुराने समय का लोहगढ़ उत्तर की ओर तो दक्षिण की ओर वहां किसी राजा का किला हुआ करता था जिसके पुरावशेष आज भी वहां मौजूद हैं। इसी किले पर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने आक्रमण किया था। उसकी तोपों ने इतने गोले उगले थे कि उस किले की एक भी र्इंट सुरक्षित नहीं मिली। लोहगढ़ जो कुंडा के बाबा भोगशरण के आश्रम के उत्तर की ओर है वहां आल्हा-ऊदल ने कभी बड़ी विकट लड़ाई लड़ी थी। ऐसा वहां के पुराने जानकार बताते थे। हमने ये सारी बातें बचपन में बड़े भइया महादेव सिंह उर्फ पोंगी सिंह से सुनी थी। इसकी पुष्टि हरीपुर निवासी सुखराज सरोज ने भी की थी। बरदैंता के मुनई यादव और ठाकुर रणबहादुर सिंह उर्फ डिप्टी साहेब ने भी बताई थी। ठाकुर महावीर सिंह मुख्तार साहेब ने भी इस बात का जिक्र किया था। बाबूजी राजनारायण सिंह उर्फ गोसार्इं सिंह ने भी  इस बात को बताया था। इसके बाद जब ग्रंथों को खंगाला गया तो इस बात की पुष्टि हुई।
सोया रहा राज्य का पुरातत्व विभाग-
महाराजा पृथ्वीपाल सिंह का ऐतिहासिक महल उनके परपोतों की उदासीनता का शिकार होकर ढह गया। तो वहीं लोहगढ़ को खोजने आज तक कोई नहीं आया। अलबत्ता इस क्षेत्र से वोट लेकर तमाम नेता पूरी जिंदगी ऐश किए और मर खप गए। इलाके के तथाकथित पत्रकारों को या तो इसकी जानकारी नहीं है और यदि है भी तो वे इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहते।
पानी के लिए तरसेंगी आने वाली पीढ़ियां-
पहले जब दाउदपुर झील थी तो आसपास के इलाकों में जलस्तर इतना ऊपर था कि बेसार, सरायमधई और पहारा मुरारपटी जैसे इलाकों में बिल्कुल नजदीक ही पानी मिल जाया करता था। अब आलम ये है कि एक ओर जहां लोग धुआंधाड़ बोरिंग करके भू-जल का दोहन करने में लगे हैं ऐसे में लगता है कि वो समय दूर नहीं जब यहां के लोग पानी के लिए तरसेंगे।

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