कुंडा को कर दिए मुंडा
आर.पी. सिंह की दो टूक-
मामला उत्तर प्रदेश के दाउदपुर झील के किनारे आस्था का केंद्र रहे बुढऊ बाबा धाम का
स्थानीय गुंडा ने कुंदा बेंचकर कुंडा को मुंडा कर दिया। पहले वहां एक ही संत बाबा ब्रह्मानंद रहते थे। जो सिर और दाढ़ी मूंछ घुंटाए बाबा भोगशरण की उपासना किया करते थे। बचपन में हम भी वहां कड़ा प्रसाद खाने जाते थे। ऐसा बताया जाता है कि वहां बाबा गंगादास की धूनी है, जिससे कभी बाबा तोताराम ने सोने की र्इंटें निकाल कर महाराजा पृथ्वीपाल सिंह को लगान के लिए दी थीं। बाबा ब्रह्मानंद उन्हीं बाबा तोताराम के शिष्य बताए जाते हैं। स्थानीय लोग भी बाबा का बड़ा सम्मान करते थे, मगर इन्हीं गुंडों ने उस संत पर उसी कुंडा आश्रम में कल्हाड़ियों से हमला करवाया। किसी तरह उनकी जान तो बच गई मगर एक साल के अंदर ही बाबा ब्रह्मानंद ब्रम्हलीन हो गए। हां एक बात और हुई उस दौरान कि बाबा दिन में भले कुंडा आश्रम पर रहते थे, मगर शाम होते ही वो आश्रम छोड़ दिया करते थे,जिसका फायदा भी वहां के कुछ लोगों ने खूब उठाया। बाबा पर भी आरोप लगाए जाते रहे कि उन्होंने भी वहां की कुछ जमीन बेंच दी थी। हालांकि ये बात प्रमाणित नहीं हो पाई।
पहले वहां के बांस का नाश किया गया। फिर सरस्वती कुंड की मछलियां मारी गर्इं। उसके बाद काटे गए हरे-भरे पेड़ और इस अभियान को नाम दिया गया सौंदर्यीकरण अभियान।
बाबा का सवाल और निहाल होते लाल-
पंचवटी के बीच स्थापित शिव लिंग पर जल ढाल कर जब परिक्रमा करते हैं तो लगता है कि भोले नाथ पूंछ रहे हों कि यहां ऐसा आखिर कब तक चलेगा। घंटों की चोरियां तो वहां कई बार हो चुकी हैं। घाटों के निर्माण में लगने वाले सीमेंट को भी बेंचकर कई लाल, निहाल हुए।
विरोध के नाम पर सिर्फ चुप्पी-
इतना सबकुछ हुआ वो भी उस जगह जहां कभी बेसार की महिलाओं ने नसबंदी करने गई टीम के अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को जोते खेतों में रौंदकर अपनी मुख़ालफ़त का लोहा मनवाया था। ये दीगर बात है कि पुलिस फायरिंग में वहां कई लोग शहीद हुए थे, उसी तहसील पट्टी में विरोध का बिगुल बजा तो वहां भी तीन लोगों ने शहादत दी। पर जैसे ही बात बुढऊ बाबा के आश्रम की आती है तो बस एक ही जवाब उस क्षेत्र से मिलता है चिरपरिचित चुप्पी....!
आश्रम को लेकर भी खूब हुई सियासत-
वहां की रियासत से लेकर आम आदमी तक ने कुंडा को लेकर जमकर सियासत की। मन मार कर शिवरात्रि को जाकर एक लोटा जल भर ढाल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करने वाले लोग भी शिव-शिव जपते किनारे खड़े नजर आते हैं। मलमास में प्रवचन देने वालों का ज्ञान कहां गायब हो जाता है पता नहीं। अलबत्ता हारमोनियम बजा कर तो कभी प्रवचन देकर कमाई करने वाले लोगों का आश्रय बनकर रह गया ये प्राचीन आश्रम। देखने के बाद बस एक ही बात बरबस मुंह से निकलती है कि वाह रे गुंडा... कुंडा को भी कर डाले मुंडा?
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