आरपी सिंह की दो टूक भारतीय रेल को ठेल रहे मंत्री और संतरी व्यवस्था का तेल निकाल रहे हैं। एक्सप्रेस हो या मेल सारी की सारी गाड़ियां फेल। अपना छिपाकर ऐब आम आदमी की काट रहे हैं जेब। गरीबों के बच्चों का छीनकर निवाला खरीद रहे हैं सेब। नए पन्ने में वही पुरानी कहानी, न बैठने को सीट, न पीने को पानी, समस्या है विकट, नहीं मिल रहे कन्फर्म टिकट। दलाल हो रहे कमा कर लाल, अधिकारी निहाल और आम आदमी हलाल, सुरेश प्रभू बेकार में ठोंक रहे हैं ताल वे ये क्यों नहीं मानते कि इन्हीं लोगों ने रेल की बिगाड़ी है चाल। हम तो बस इतना ही कहेंगे कि- सच बात मान लीजिए, चेहरे पे धूल है। इल्ज़ाम आइने पे लगाना फुज़ूल है।।