ऐसी चट्टान जिससे आती है ढोलक की तरह आवाज..
छत्तीसगढ़ के पत्थरों में छिपा अद्भुत रहस्य जिसकी आज चर्चा है-. !-
अम्बिकापुर। भैयाथान विकासखण्ड में इस पत्थर के चर्चे तो काफी है, लेकिन यहाँ और जिले में भी यह अपनी पहचान बना चुका है। इस पत्थर का रहस्य आज तक कोई नही जान पाया है। लेकिन अब तक यह अबूझ ही साबित हुआ है।
क्षेत्र के सिवारी गांव के जंगल में स्थित यह पत्थर करीब 10 फीट ऊंचा व 2मीटर की चौड़ाई लिए हुए है। यहां के ग्रामीणों ने इस पत्थर पर चढ़ के हिलाते है।तो दूर दूर तक ढोलक की तरह आवाज आती है। चैत राम नवमी में वहा जा के रामायण भी गाया जाता है।और जब पत्थर को हिलाते हैं।तो मधुर ध्वनि निकलती है। यहां पहुचने के लिए जंगल चढऩा पड़ता है।
ग्रामीणों ने बकायदा यहां पर पूजा अर्चना भी करते है। पत्थर के कारण इस जंगल का नाम झण्डाघुटरी से प्रचलित हो गया है। बताया जा रहा है कि ढोलक की तरह आवाज आने के कारण ही गांव के बुजुर्गों ने इसका नाम हदगुडिय़ा रख दिया। तब से लेकर आज तक यह इसी नाम से प्रसिद्ध है।
सूरजपुर जिले का यह पहला पत्थर है। यह प्रचलित हो चला है। वही इस पत्थर का रहस्य जानने कोई भी शोधकर्ता नहीं पहुंचा है और न ही जिला प्रशासन पहुंचा है। अब तक यह पत्थर अबूझ पहेली बना हुआ है।
ऐसा है हदगुडिय़ा पत्थर सफेद काला के साथ चमकदार भी है। दूर से देखने में यह सामान्य पत्थर की भांति ही नजर आता है। लेकिन जैसे-जैसे आप इसके नजदीक जाएंगे, पत्थर आपको अपनी ओर आकर्षित करने लगता है। हदगुडिय़ा के दो पत्थरों को आपस में हिलाने से ढोलक के संगीत जैसे स्वर निकलते हैं, जो कानों को काफी मधुर लगते हैं।
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अम्बिकापुर। भैयाथान विकासखण्ड में इस पत्थर के चर्चे तो काफी है, लेकिन यहाँ और जिले में भी यह अपनी पहचान बना चुका है। इस पत्थर का रहस्य आज तक कोई नही जान पाया है। लेकिन अब तक यह अबूझ ही साबित हुआ है।
क्षेत्र के सिवारी गांव के जंगल में स्थित यह पत्थर करीब 10 फीट ऊंचा व 2मीटर की चौड़ाई लिए हुए है। यहां के ग्रामीणों ने इस पत्थर पर चढ़ के हिलाते है।तो दूर दूर तक ढोलक की तरह आवाज आती है। चैत राम नवमी में वहा जा के रामायण भी गाया जाता है।और जब पत्थर को हिलाते हैं।तो मधुर ध्वनि निकलती है। यहां पहुचने के लिए जंगल चढऩा पड़ता है।
ग्रामीणों ने बकायदा यहां पर पूजा अर्चना भी करते है। पत्थर के कारण इस जंगल का नाम झण्डाघुटरी से प्रचलित हो गया है। बताया जा रहा है कि ढोलक की तरह आवाज आने के कारण ही गांव के बुजुर्गों ने इसका नाम हदगुडिय़ा रख दिया। तब से लेकर आज तक यह इसी नाम से प्रसिद्ध है।
सूरजपुर जिले का यह पहला पत्थर है। यह प्रचलित हो चला है। वही इस पत्थर का रहस्य जानने कोई भी शोधकर्ता नहीं पहुंचा है और न ही जिला प्रशासन पहुंचा है। अब तक यह पत्थर अबूझ पहेली बना हुआ है।
ऐसा है हदगुडिय़ा पत्थर सफेद काला के साथ चमकदार भी है। दूर से देखने में यह सामान्य पत्थर की भांति ही नजर आता है। लेकिन जैसे-जैसे आप इसके नजदीक जाएंगे, पत्थर आपको अपनी ओर आकर्षित करने लगता है। हदगुडिय़ा के दो पत्थरों को आपस में हिलाने से ढोलक के संगीत जैसे स्वर निकलते हैं, जो कानों को काफी मधुर लगते हैं।
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