चकल्लस छत्तीसगढ़ की





शिक्षा विभाग की जय हो
दादा छविनाथ मिश्र  लिख गए कि- भाषा-भूसी नारा चारा, अब दे मारा, तब दे मारा भजमन प्यारे टका-टकेश, राम भरोसे पूरा देश। यहां तो हम पूरे प्रदेश की बात करने जा रहे हैं। यहां भी हालात बिल्कुल वैसे ही हैं। टका-टकेश के लिए कुछ लायक विद्वान भाषा की भूसी छुड़ाने पर आमादा हैं। उनकी भाषा और व्याकरण ज्ञान देखकर प्राइमरी का जागरूक छात्र भी तैश में आ जाएगा। आलम ये है कि कभी नेताजी सुभाष चंद्र को उग्रवादी तो कभी गुरु बाबा घासीदास को हरिजन बताने पर तुले हैं। ये बातें तो प्रदेश का कोई 15 साल का बच्चा भी जानता है। अब ये महान विद्वान क्यों नहीं जानते? ये पता नहीं है। अलबत्ता सातवें वेतनमान की मांगें जरूर की जा रही हैं। प्रदेश ने पिछले साल ही शिक्षा का गुणवत्ता वर्ष मनाया। जब जांच की गई तो सामने आया कि आठवीं के बच्चों को पांच का पहाड़ा भी सलीके से नहीं आता। तो वहीं उनको मनमर्जी किस्म का कोर्स पढ़ाया जा रहा है। इसमें ऐसी गलत जानकारियां हैं। विभाग के पंडा इसके बाद भी भांजते फिर रहे हैं शिक्षा के अधिकार वाला डंडा। जिसको शर्म और न भय हो ऐसे शिक्षा विभाग की जय हो।
धोबिया जल बीच मरत पियासा
बाबा तुलसी दास जी कह गए कि - सकल पदारथ यहि जग मांही, कर्महीन नर पावत नाहीं। बिल्कुल सटीक बात कह गए बाबा। जिस राज्य में खनिजों और जड़ी-बूटियों से लेकर हीरे और सोने तक की खादानें हों। जहां पानी का अकूत भंडार हो। वहां के लोग अगर प्यासे मरें तो फिर भला कोई क्या करे? आलम ये है कि प्रदेश के सुखिया मुखिया भी विदेशों में निवेश खोजने जा रहे हैं। इससे बड़ी अकर्मण्यता और क्या हो सकती है भला? यदि राज्य सरकार खुद इन सारी खदानों का अधिग्रहण कर उनमें अपने लोगों को नौकरी दे-  दे और खुद ही प्रोसेसिंग करके बाहर भेजती तो छत्तीसगढ़ आज देश का सबसे समृध्द प्रदेश होता, लेकिन बात तो वहीं आकर फंस जाती है न? बाबा कबीरदास ने शायद इसी लिए कहा था कि धोबिया जल बीच मरत पियासा।

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