एक से ज्यादा क$फन का बंद हुआ चलन



दर्रा पंचायत की अनूठी पहल, मृत्यु भोज निमंत्रण में घर से लेकर आए अपने खाने का बर्तन, बेटी की विदाई में नहीं देंगे कपड़े
 बालोद । गांवों में किसी की मौत हो जाने पर हर रिश्तेदार और हित-मित्रों के क$फन देने की प्रक्रिया में बदलाव किया गया है। अब ये लोग क$फन की बजाय पैसे देंगे। इससे एक ओर जहां कपड़े की बरबादी रुकेगी वहीं पीडि़त परिवार की मदद भी हो जाएगी। ये फैसला जिले की ग्राम पंचायत दर्रा ने सर्व सम्मति से लेकर इसको लागू भी कर दिया गया है। यही नहीं मृत्यु भोज में प्लास्टिक के सामानों के उपयोग पर भी पाबंदी लगा दी गई है। ऐसा पर्यावरण को ध्यान में रखकर किया गया है।
समिति की बैठक में ये रहे मौजूद-
पंचायत के निर्णय में सभी ग्रामीणों की सहमति है।  ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष भीष्म शांडिल्य, संरक्षक गजानंद साहू, सिन्हा समाज के प्रमुख झुमुकलाल सिन्हा, सरपंच प्रतिनिधि देवानंद साहू, आदिवासी समाज के जितेंद्र यादव आदि ने बताया कि पैसे की बर्बादी रोकने के लिए ये फैसले लिए गए हैं।
मिनटों में जल जाता है हजारों का क$फन-
उन्होंने कहा कि लोग किसी के अंतिम संस्कार में जाते हैं तो 20-30 रुपए का कफन ले जाते हैं और वहां उसे जला दिया जाता है।  यानी कुछ ही देर में लगभग हजार रुपए स्वाहा हो जाते हैं।  इसका कोई औचित्य नहीं है।  इसलिए तय किया गया है कि लोग पैसे ही दे दें।  एकत्र हुए पैसे का एक ही कफन खरीदा जाए और बाकी रकम पीडि़त परिजन को दे दी जाए, जो उनके काम आ सकें।
ग्राम दर्रा के निवासियों की पहल अन्य गांव के लोगों के लिए बेहद सार्थक साबित हो सकती है।  किसी की मृत्यु पर उसके शव के ऊपर कफन डालने के बाद उसे जला दिया जाता है।  इससे सिवाय कपड़े और पैसों के नुकसान के कुछ नहीं होता।
बेटी की विदाई पर घरवालों से नहीं लेंगे कपड़े-
दर्रा में इस संबंध में शनिवार को बैठक हुई।  इसमें यह भी निर्णय लिया गया कि यदि किसी के घर शादी होती है तो विदाई में घरवालों से कोई कपड़ा नहीं लेंगे।
खुद लेकर जाएं बर्तन-
इसी प्रकार शादी या मरण के काम में यदि सामूहिक भोज कराया जाता है तो सभी आमंत्रित लोग अपने-अपने घर से पानी पीने के लिए गिलास ले जाएंगे।  यहां प्लास्टिक की डिस्पोजल थाली, कप और गिलास के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है।
ग्रामीणों का मानना है कि दर्रा पंचायत के फैसले से कई गांवों के लोगों को नई सीख मिलेगी।  साथ ही मृतक के परिवार को थोड़ी बहुत आर्थिक मदद मिल जाएगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।

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