स्कूली बच्चों की जान का रोग बना योग






शव आसन की मुद्रा में शिक्षा विभाग ,पास में दम नहीं हम किसी से कम नहीं
-विवादित संत आसाराम की पुस्तकों को स्कूलों में बांट कर तमाशा बना प्रदेश का शिक्षा विभाग एक बार फिर से सवालों के घेरे में है। इस बार उसने बिना योग के शिक्षकों के कांकेर के 14 स्कूलों के 642 छात्र-छात्राओं में योग की पुस्तकें बंटवा दी। अब सवाल ये उठता है कि आखिर इनको पढ़ाएगा कौन? कौन कराएगा इन बच्चों को योगाभ्यास? इस सवाल को सुनने के बाद शिक्षा विभाग शव आसन करने में लगा है। विभाग की असल ह$कीकत ये है कि पास में दम नहीं हम किसी से कम नहीं।

 
कांकेर। शिक्षा के अधिकार की बड़ी-बड़ी बातें करने वाला शिक्षा विभाग राज्य में शिक्षा को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। आलम ये है कि कांकेर  के 14 स्कूलों के 642 बच्चों को योग की किताबें बांटी गईं।  जब कि पूरे जिले में योग का एक ही शिक्षक है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि इन बच्चों को योग आखिर सिखाएगा कौन?
शिक्षा विभाग का विवादों से गहरा नाता-
 पहले विवादित संत आसाराम की अश्लील किताबों को बांट कर  सवालों के घेरे में आए शिक्षा विभाग ने लगता है न सुधरने की कसम खा रखी है। इससे भी पहले बच्चों को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के मामले में भी विवादि सामग्री उपलब्ध कराई गई थी। हालांकि ये पुस्तकें तो पाठ्य पुस्तक निगम के उदीयमान विद्वानों की आलस का परिणाम थीं। तो वहीं तमाम आरोपों में सलाखों के पीछे तशरी$फ फरमा संत आसाराम की किताबों के पीछे विभाग के अधिकारियों का लालच। ऐसे में  राज्य के बच्चों का भविष्य किस दिशा में जाएगा ये सवाल निहायत चिंता का विषय है।
 बिना तैयारी युध्द में उतरने जैसी हालत-
केन्द्र सरकार के आदेश को अमल में लाने के लिए शिक्षा विभाग की स्थिति बिन तैयारी के युद्ध के मैदान में उतरने जैसी है।  शिक्षा विभाग के पास जिस विषय के शिक्षक ही नहीं है, उस विषय को व्यापक स्तर पर लागू कर देना आश्चर्य में डाल देने वाला फैसला है। प्रदेश सरकार की तरफ से नि:शुल्क पुस्तक प्राप्त करने आए शिक्षक भी विभागीय इस फैसले से अवाक थे, लेकिन शिक्षक चुपचाप पुस्तक लेकर जाने को तैयार नहीं थे।
पूरे जिले में महज एक योग शिक्षक-
 प्राथमिक शाला की बात करें या माध्यमिक शाला की पूरे जिले में किसी के पास छात्रों को योग सिखाने के लिए शिक्षक नहीं है।
न योग शिक्षकों की वांट निकली और न हुई भर्ती-
शिक्षा विभाग की तरफ से इसके लिए आज तक नियुक्ति ही नहीं निकाली गई, और न ही इसके लिए किसी अध्यापक की भर्ती की गई। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि जब शिक्षक की नहीं है तो फिर किताबें क्यों बांटी जा रही हैं? क्या इसको भी अधिकारियों ने आसाराम वाली किताब समझ रखा है?
शिक्षकों के चेहरे पर आते जाते भाव-
इसके बावजूद 6  विषयों के साथ-साथ सातवें विषय के तौर पर योग की किताबें उपलब्ध करा दी गईं। नि:शुल्क मिल रही  पुस्तकों को संकुल केन्द्र पर आए शिक्षक शांत भाव से लेकर निकल रहे थे, लेकिन सभी शिक्षकों के चेहरे पर विवशता के भाव सरलता पूर्वक देखे जा सकते थे।
कुछ शिक्षकों को मिला था एक सप्ताह का  प्रशिक्षण-
      बच्चों को योग सिखाने के लिए शिक्षा विभाग की ओर से प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था, लेकिन यह योजना भी सफल नहीं हो पाई थी। जिले के कुछ शिक्षकों को योग प्रशिक्षण देने के लिए चुना गया था । पिछले वर्ष योग प्रशिक्षण के लिए अनुपम जोफर, बसंत कुमार गुप्त, धनंजय पोया और  अशोक कुमार कुंभकार को रायपुर भेजकर एक सप्ताह का प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा गया था।
उसके बाद क्या हुआ-
प्रशिक्षित शिक्षकों में अनुपम जोफर स्वास्थ्य कारणों  की वजह से   18 सितम्बर से 24 सितम्बर तक आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में नही पहुंच पाए थे। शेष तीन को ही प्रशिक्षण प्रदान किया गया। प्रशिक्षण प्राप्त तीन शिक्षकों में से एक ही शिक्षक विभाग में मौजूद है। बंसत कुमार गुप्त सेवानिवृत्त हो चुके हैं और अशोक कुमार कुंभकार का देहान्त हो चुका है।
धनंजय पोया हैं पूरे जिले में एक अदद योग शिक्षक-
 साप्ताहिक प्रशिक्षणप्राप्त धनंजय पोया के भरोसे ही जिले के 14 शालाओं में पंजीकृत 6 42 छात्रों के हाथों में योग की किताबें थमा दी गई हैं। ऐसे में सवाल तो यही है कि  आखिर इतनी सारे स्कूलों में ये अकेला शिक्षक कैसे सिखाएगा योग?

और बजता रहा शिक्षा सचिव सुब्रत साहू का फोन-
प्रदेश के शिक्षा विभाग के सचिव सुब्रत साहू के दूरभाष क्रमांक 7898450000 पर उनका पक्ष जानने के लिए लगातार संपर्क साधने की कोशिश की गई। लगातार घंटी बजने के बावजूद भी साहब ने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा। इससे साहब की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है।

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