मोदी के इस हाल पर सवाल


खुशी की आँख में आंसू की भी जगह रखना, बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते।


केरल के कोल्लम की पुतिंगल देवी के मंदिर में आतिशबाजी से भड़की आग में 102 लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें 350 लोग घायल बताए जाते हैं। यही नहीं इस हादसे में कुछ विदेशी नागरिकों के मारे जाने का भी इम्कान है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल एक् शन लेते हुए बर्निंग एक्सपर्ट्स की टीम को लेकर केरल रवाना हो चुके गए। यही नहीं उनके विशेष निर्देश पर वायुसेना के 8 चौपर्स लगातार राहत और बचाव कार्यों मेंं जुटे हुए हैं। देश के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी मौका-ए वारदात पर मौजूद हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने तत्काल राहत की भी घोषणा कर दी।  उन्होंने ये भी ऐलान कर दिया कि यदि जरूरत पड़ी तो घायलों को दिल्ली भी लाया जा सकता है।
इतनी सारी कवायद के पीछे का कारण सिर्फ एक ही है। वो है देश के कई राज्यों में होने वाला चुनाव।  ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री खुद को एक अच्छे प्रधानमंत्री के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। इसी लिए इतनी सारी तैयारियां एक साथ की गईं। हर कोई उन गरीबों के बगल खड़ा नज़र आ रहा है। सामने ये भी आया कि ये हादसा अवैध आतिशबाजी के चलते हुआ। इसको लेकर भी आनन-फानन में जांच के आदेश जारी कर दिए गए।
ठीक वही नरेंद्र मोदी हैं जो छत्तीसगढ़ में लगातार हो रही किसानों की मौत पर चुप्पी साधकर बैठ जाते हैं। नया रायपुर में जिन किसानों की जमीन गई उनको आज तक मुआवजा नहीं मिला। प्रधानमंत्री कई बार नया रायपुर आए और चले गए मगर आज तक उन किसानों से ये नहीं पूंछा कि जब सरकार ने तुम्हारी जमीन छीन ली तो तुम अपनी रोजी-रोटी कैसे कमाते हो?
छत्तीसगढ़ में नक्सली विस्फोट में एक साथ 7 जवान शहीद हो जाते हैं। उसके बावजूद भी प्रधानमंत्री छत्तीसगढ़ झांकने तक नहीं आते। प्रदेश में डर और सरेंडर का जो खेल पुलिस आदिवासियों के साथ खेल रही है। उसको देखने वाला कोई नहीं है। आए दिन राज्य में नक्सली आदिवासियों को जन अदालत लगाकर गाजर मूलियों की तरह काट डालते हैं। इसके बावजूद भी कोई उनकी सुनने वाला दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता।
हम इस मामले को यहां इस लिए उठाना चाहते हैं ताकि देश के लोगों को हमारे प्रधानमंत्री का दोहरा चरित्र समझ में आ जाए।
एक ओर तो स्वच्छ भारत अभियान को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। तो वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के धमतरी की कंवर बाई ने अपनी बकरियां बेंचकर जब शौचालय बनवाया तो प्रधानमंत्री उनके पैर पडऩे आ गए। सवाल तो ये नहीं था, सवाल ये था कि उनको रमन सिंह से पूछना चाहिए था कि क्या आपके राज्य में ये हालात हैं कि गरीबों को अपने जानवरों को बेच कर सरकारी योजनाओं के लिए हवन करना पड़ रहा है? लेकिन नहीं वे तो यहां सिर्फ अपनी बातें कहने आए थे जाकर राजनांदगांव में बोले और फिर रवाना हो गए।
महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में पेयजल के लिए हाहाकार मचा हुआ है। कितने लोगों से यहां आकर मोदी मिले? तो फिर कोल्लम के लिए इतनी ममता उमडऩे के पीछे सिर्फ- और सिर्फ कुर्सी की राजनीति है। इसके बाद एक बार जीत कर गए तो पांच साल बाद ही दर्शन देने आएंगे। विश्वास न हो तो करके देख लो।
मंदिरों और तमाम सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्थ पुख्ता की जानी चाहिए। ताकि ऐसी भयावह स्थितियों पर तत्काल काबू पाया जा सके।
अगर प्रधानमंत्री के एक् शन का रेट चुनाव के बाद भी ऐसा ही रह जाएगा, ऐसा नहीं लगता। ये सारी ममता चुनावी  है। इसके माध्यम से पूरे देश में चुनावी रोटियां सेंकी जानी है। ऐसे में जन प्रतिनिधियों का ये नैतिक दायित्व बनता है कि वे पूरी दिलेरी के साथ ऐसे अधिकारियों से मुलाकात कर अपने कागजात अपने नाम करवा लें।
आज पूरा देश कोल्लम के उन लोगों के साथ खड़ा है जिन्होंने इस हादसे में अपनी जान गंवा दी।
उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे लोगों को तत्काल कोशिश में लग जाना चाहिए। जो उन लोगों की मदद का माद्दा रखते हैं।

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