ब्रांड एम्बेसडर बनी चौकीदार,चुप्पी साधे बैठी सरकार



 बेटियों के लिए भी हाथ उठाओ यारों, रोज अल्लाह से बेटा नहीं मांगा करते। किसी शायरा की ये पंक्तियां और छत्तीस सरकार का बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा की असल ह$कीकत ये है कि जिस महिला को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की जागरूकता और सशक्तीकरण के नाम पर ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया। वो गरीब महिला गरियाबंद के देवभोग की कस्तूरबा आवासीय स्कूल में चौकीदारी करती हैं जो 6 महीने से बिना पैसों के काम कर रही है। इसका दर्दनाक पहलू ये भी है कि उस महिला के पास अपना सम्मान पत्र लाने राजनांदगांव जाने के लिए किराए के पैसे तक नहीं थे। लोगों को करोड़ों बांटने वाली छत्तीसगढ़ सरकार ने एक धेला भी नहीं दिया। ऊपर से इस बेटी को महज एक कागज का टुकड़ा थमा कर वहां से चलता कर दिया। ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या यही है सरकार की बेटी बचाओ अभियान की असलियत? बेटियों के साथ ऐसी दोगली हरकतें आखिर क्यों? इस पर सरकार का कोई भी जिम्मेदार कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

महिला सशक्तीकरण के नाम पर राज्य में हो रहा घटिया मजाक,
रायपुर।
क्या है पूरा मामला-
महिलाओं में जागरूकता और सशक्तीकरण के नाम पर इस साल छत्तीसगढ़ सरकार ने उर्मिला को ब्रांड एम्बेसडर बनाया था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इसको लेकर बड़े ही जोर-शोर से घोषणा की गई थी।
लेकिन अब जो सच्चाई आपको बताएंगे उसे जानकर आप भी माथा पीट लेंगे। जी हां उर्मिला इस समय गरियाबंद के देवभोग की कस्तूरबा आवासीय स्कूल में चौकीदारी करती हैं जो 6 महीने से बिना पैसों के काम कर रही हैं।
जब उनको नारी शक्ति सम्मान के लिए चुना गया तो उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह राजनांदगांव जाकर यह प्रशस्ति पत्र ले सकें, लेकिन सरकार और प्रशासन ने भी महिला सशक्तिकरण के नाम पर सिर्फ दिखावा ही किया और उर्मिला को समाज कल्याण विभाग की ओर से एक पत्र पकड़ा कर हमेशा के लिए मुंह मोड़ लिया।
अब अंदाजा लगा सकते हैं कि महिला सशक्तीकरण और न जाने कितने ही ऐसे कार्यक्रम हैं जिन पर लाखों रुपए फूंक कर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। छत्तीसगढ़ की ब्रांड एम्बैसडर सबसे बड़ा उदाहरण है।

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