चकला बनती कोतवाली के बगल वाली चावड़ी
चहेरे में गहरा मेकप होठों पर चटख रंग की लिपिस्टिक लगाये करीने से बालों में जुड़ा बनाए मैचिंग कलर की साड़ी... और खोजती हैं दिहाड़ी....पास से गुजरते ही चेहरे पर कुटिल मुस्कान के साथ सीधा सा सवाल.... रेजा लगबे का बाबू ...इतनी सी अदा इनके चाहने वालों को कर देती है बेकाबू। चौंकिए मत हुज़ूर... न तो ये मजदूर हैं और न ही मजबूर। बताते हैं यहां के जानकार कि ये इसी अंदाज में करती हैं देहव्यापार...!
दिहाड़ी मजदूरों के काम पर जाने के बाद,यहां सजती है देह की मंडी
रायपुर। राजधानी के व्यस्तम क्षेत्रों में सिटी कोतवाली चौक व कांग्रेस भवन गांधी मैदान के बीच की तिराहे में पिछले 60 वर्षो से मजदूरी करने के लिये आने वाले मजदूरों के इकठ्ठा होने के जगह को चावड़ी के नाम से जाना जाता हैं। इस स्थान पर राजमिस्त्री , कार पेंटर, पेंटर, पलम्बर, इलेक्ट्रीशियन, ठेके पर ढलाई का काम करने वालें मजदूरों सहित महिला व पुरुष मजदूर भी अपनी रोजी रोटी तलाश करने रोज यहां आकर इकठ्ठा होते हैं। वर्ममान में इस चावड़ी में लगभग 1500 मजदूर हैं, लेकिन कुछ वर्षो से यह चावड़ी देह व्यापार का अड्डा बनती जा रही हैं। यहां पर मजदूरी की आड़ में कुछ देह व्यापार करने वाली महिलाएं संगठित होकर विकृति फैला रही हैं। ऐसा भी नही हैं कि सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र से दस कदम पर चलने वाले देह व्यापार से पुलिस अनिभिज्ञ हो।
चावड़ी क्या है-
सन् 1962 में पड़े भीषण आकाल की मार से त्रस्त होकर प्रदेश के विभिन्न गामीण आंचलों के लोग जीवन यापन करने शहर की ओर आ बसे। शहर के मध्य इस स्थान पर काम की तलाश के लिये इकठ्ठा होने लगे तब से इसका नाम चावड़ी पड़ गया।
चावड़ी तब और अब..
इस चावड़ी के माध्यम से मजदूरों से कार्य कराने वाले जरूरत मंदों को मजदूरों की तलाश में नहीं भटकना पड़ता। ये कामगार लोग काम की तलाश में सुबह 8 बजे से 10 बजे तक यहां पाए जाते थे। उसके बाद यह चावड़ी पूरी तरह खाली हो जाती थी। जिन्हें काम मिला वो काम पर जाते और जिन्हें नहीं मिला वे घर लौट जाते थे, लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि पुरुष मजदूर व महिला मजदूर को छोड़कर संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पुरुष व महिलाएं वहां मंडराते मिल जाएंगे। ये महिलाएं सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक वहां बने पाटों पर बैठकर आने जाने वालों को आंखों की भाषा में अश्लील इशारे करते नजर आ जाएंगी।
बातचीत के अंश-
समय- दोपहर 2 बजे स्थान- सिटी कोतवाली तिराहा (चावड़ी)
संवाददाता:- काम में चलोगी क्या ?
महिला:- कहां ले जाओगे
संवाददाता:- कितना लोगी ?
महिला:- एक घंटे का 500
संवाददाता:- लेकिन यहां रेजा का रेट तो दिनभर काम करने का 250 रुपए है ?
महिला:- तो सुबह आना था न..!
संवाददाता:- ऐसा क्या काम करती हो जिसका रेट 500 रुपए है ?
महिला:- पहले लेे चलो फिर बताऊंगी पूरे पैसे एडवांस में देने होंगे रिक् शे का भाड़ा अलग।
संवाददाता:- तुम्हारा नाम क्या हैं ?
महिला:- नाम से क्या मतलब, काम करना और निकल जाना कमरे की व्यवस्था हैं तो बोलो नहीं तो पुराना बस स्टेंड के पीछे मैं ले चलूंगी कमरे का 300 रुपए अलग से पीने- खाने का खर्चा अलग।
संवाददाता:- ठीक है, मैं ए.टी.एम से पैसे निकालकर आता हंू।
महिला:- कम से कम 50 रुपए देते जाओ तुम्हारे आते तक चाय - पानी गुटखा खां लुंगी। साथ 50 रुपए वाली टोपी (कंडोम) लेते आना।
शहर में और भी है एक चावड़ी
जहां सिटी कोतवाली को बड़ी चावड़ी के नाम से जाना जाता हैं, वहीं गौरव पथ से जुड़ी एक और चावड़ी जिसे तेलीबांधा चावड़ी के नाम से जाना जाता हैं। हमारे संवाददाता द्वारा वहां पहुंच कर पतासाजी किये जाने पर वहां इस तरह के मामले सामने नहीे आया। चावड़ी में मजदूरी काम करने आयी एक महिला से चर्चा किये जाने पर उसने बताया- सुबह 8 बजे यह चावड़ी लगती हैं और 10बजे खाली हो जाती हैं। यह सब बड़ी चावड़ी में होता है।
कैसे बना देह व्यापार का अड्डा चावड़ी
आज से कुछ दशक पहले शहर के बीचोंबीच बाबूलाल टाकीज हुआ करती थी। उससे दस कदम दूर एक गलीनुमा जगह में जमुना बाई नामक महिला 8 - 10 महिलाओं को लेकर देह व्यापार किया करती थी। पूरे प्रदेश में इस जगह को बाबूलाल गली व दारगली के नाम से जाना जाता था, तत्कालीन एसपी संत कुमार पासवान के नेतृत्व में एक टीम गठित कर छापामार कार्यवाही करते हुए सभी देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। मानवीय संवेदना के चलते तत्कालीन विधायक तरूण चटर्जी ने इन्हें जेल से छुड़ाकर नया बस स्टेंड स्थित रैन बसेरा में इन्हें अं
शकालीन पनाह दिया और इनके भोजन व्यवस्था व इन्हें व्यापार करने के लिये कुछ रुपए भी दिए। कुछ दिन ठीक - ठाक चला उसके बाद ये महिलाएं अपने दलालों को पति बनाकर शहर के झुग्गी बस्तीयों में किराये का मकान लेकर रहने लगीं और वहां मजदूर वर्ग से जुड़ी कुछ युवतियों व महिलाओं को कम वक्त में ज्यादा कमाई का लालच देकर अपने जाल में फंसा लिया और चावड़ी की आड़ में देह व्यापार करने लगी।
क्या कहते हैं समाजशास्त्री
यह प्रथा कोई नई प्रथा नहीं है। सदियों से चली आ रही इस प्रथा के रूप में परिवर्तन आता रहा। इतिहास के पन्नों में नगर वधू आम्रपाली का जिक्र होता हैं, लेकिन वर्तमान परिवेश व परिस्थिति में इस पेशे से जुड़ी महिलाओं के लिये सरकार को अलग व्यवस्था व अलग स्थान व इनके हित में कोई ठोस कारगर कदम उठाये तो समाज में बढ़ रहे, बलात्कार व अन्य यौन उत्पीडऩ के मामले कम होंगे। यह ही नहीं इनके बच्चों के लिये शिक्षा व्यवस्था भी करें ताकि भविष्य में ये बच्चे स्वयं को उपेक्षित न समझें अपराध की अंधी गलियों में न भटकें और समाज को एक नयी दिशा प्रदान करें।
आर. कुमारस्वामी
समाजशास्त्री
क्या कहती हैं, पुलिस
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