कांग्रेस की भीतरी रार और गिरता जनाधार




दो ध्रुवीकरण के बीच फंसी प्रदेश कांग्रस
 भीतरी रार और गिरते जनाधार के संकट से जूझ रही कांग्रेस ने एक बार फिर से खुद को एकजुट दिखाने का प्रयास किया है। इसके बावजूद भी प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के परिवार ने कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। शनिवार को हुए कांग्रेस के दो विरोध कार्यक्रमों को देखकर ये बात साफ-साफ समझ में आ गई कि प्रदेश कांग्रेस और भीतरी रार और टूटते जनाधार से जूझ रही है। ऐसे में अगर सक्रियता नहीं दिखाई गई तो वो दिन दूर नहीं जब कांग्रेस भी दूसरी पार्टियों की तरह हाशिए पर आ जाएगी।
 मुद्दे भी नहीं मिल रहे खोजे -
कांग्रेस के  कद्दावरों को अब प्रदेश में  मुद्दे नहीं मिल रहे हैं। यही कारण है कि महज आईपीएल को लेकर लंगी मारने खेल मंत्री के घर पहुंच गए।  तो वहीं गेस्ट हाउस के पास जाकर झीरम घाटी की सीबीआई जांच की मांग करके गंगा स्नान कर लिया। जब कि प्रदेश में मुद्दों की पूरी माला पड़ी है। किसानों की आत्महत्याएं, मुआवजे के नाम पर मजाक और आदिवासियों की हत्याएं,बिगड़ती व्यवस्था, नान घोटाला, शिक्षा की बदतर व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर असुविधाएं, हेलमेट और पनामा में राजनांदगांव सांसद अभिषेक पर जांच की मांग जैसे ढेर सारे मुद्दे हैं।

दूसरी पार्टियों का बढ़ता जनाधार-
राज्य की दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के कारनामों से प्रदेश की जनता का मन खट्टा हो चला है। ऐसे में लगातार आम आदमी पार्टी और शिवसेना और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियों का जनाधार बढ़ता जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस को अपनी इज्जत बचाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है।
वैसे भी कांग्रेस माने आधा जोगी बाकी भूपेश-
प्रदेश में कांग्रेस पार्टी साफ तौर पर दो फाड़ हो चुकी है। आधा अजीत जोगी और बाकी भूपेश एंड पार्टी। जब तक ये दोनों नेता एक साथ नहीं आते कांग्रेस की दशा और दिशा में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती।
जब कि सियासी गलियारों के जानकारों की अगर मानें तो ये बिल्कुल मुश्किल है।
फेल हो चुका भूपेश का दांव-
जिस आदिवासी और सतनामी समाज को लेकर अजीत जोगी हुंकार भरा करते थे, उसी के गिरौदपुरी की गुरूगद्दी के  दर्शन का राहुल गांधी को न्यौता देकर भूपेश बघेल ने जोगी के जनाधार पर करारा वार किया था।
तो वहीं सियासत के सिध्दहस्त अजीत जोगी और उनके समर्थकों ने वहां वो उत्पात मचाया कि शायद राहुल गांधी को भी ये अहसास हो गया होगा कि छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी का जनाधार अभी कमजोर नहीं हुआ है।
बस्तर में राहुल गांधी को बुलाने की चर्चा-
कांग्रेसियों में लगातार ये चर्चा है कि एक बार फिर वे राहुल गांधी को बस्तर में बुलाएंगे। इसी बहाने आदिवासियों का साधने की कोशिश होगी। बस्तर की12  सीटें राज्य के विधान सभा चुनावों  निर्णायक भूमिका निभाती हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए ये नितांत जरूरी हो गया है कि वो अपने जनाधार को बनाए रखे।

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