लोग प्यासे और मैदान पी रहा पानी



आंसू बहा रहे हो बैठ उनकी लाश पर, अब पानी ले के आए  हो जब प्यास मर गई।



प्रदेश में गर्मी का पारा जितनी तेजी से ऊपर को ओर चढ़ता जा रहा है। उससे कहीं ज्यादा तेजी से भू-जल स्तर नीचे की ओर भाग रहा है। प्यास से हताश और उदास लोग  त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। तो सरकार नया रायपुर के शहीद वीरनारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम को पानी पिला रही है। वो भी थोड़ा नहीं 1.60 लाख लीटर रोज। हमारे यहां कहावत है कि जिसका जन्म गलत होता है उसके कर्म भी गलत होते हैं। नया रायपुर का जन्म ही खास लोगों के खास शहर के नाम पर किया गया। लिहाजा यहां ऐसे आश्चर्यजनक कार्यों पर कोई आक्रोश नहीं होना चाहिए। यहां तो सरकार ही सूखा प्रभावित किसानों के साथ मजाक करने में कोई कोर -कसर नहीं छोड़  रही है। तो फिर जहां सौ मजाक चल ही रहे हों वहीं चार और भी तो हो सकते हैं? पहले किसानों के हिस्से का पानी उद्योगों को बेचा जाता है। उसके बाद शिवनाथ का पानी ईंट भ_े वाले पी रहे हैं वो भी सरकार की शह पर। तो उरला के पानी चोर जमकर खींच रहे हैं लगा कर बोर। तालाबों पर बनाए जा रहे हैं बहुमंजिले मकान। ऐसे में भू-जल स्तर का संभरण कैसे होगा श्रीमान।
सच कहा जाए तो राज्य के सूखा प्रभावित किसानों को सरकार ने मुआवजे में प्यास बांटी है। अब हितग्राहियों को चाहिए कि वे इसका बखूबी इस्तेमाल करें और प्यासे रहें। इससे भी बड़ा मजाक ये है कि ये सब करने वाले लोग देश के ही खजाने से इस निकम्मेपन की तनख्वाह भी ले रहे हैं।
सवाल तो ये है कि क्या इनको इसी बात की तनख्वाह दी जा रही है?
न पानी की व्यवस्था, न सफाई और न ही सलीके की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की तो बात ही मत कीजिए। सुरक्षा के नाम पर पुलिसिया तमाशा, न्यायालय से न्याय की आशा, सरकारी दफ्तरों में अधिकारियों की भाषा लोगों को आहत ज्यादा करती है राहत तो कतई नहीं पहुंचाती है।
इतने के बाद भी सरकार के सिपहसालार मंचों से लंबे-लंबे भाषण झाड़ रहे हैं। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार किसानों की हितैषी सरकार है। अब ऐसे में तो साफ समझ में आ जाता है कि सरकार किसानों की कितनी हितैषी है। जहां किसानों की कोई सुनने वाला नहीं है।  न सरकार और न ही उसके सिपहसालार। लगातार हो रही किसानों की आत्महत्याओं पर अगर कोई कुछ करने को आगे भी आता है तो उस पर ये यहां के नेता शर्मनाक बयान देते हैं।
नेताओं और अधिकारियों के साथ ठेकेदारों और दलालों का गठबंधन प्रदेश की आर्थिक हरियाली को चर रहा है। किसान और आम नागरिक भूखों मर रहा है। यहां लोग सोचने से ज्यादा सरकारी खजाने को नोंचने में लगे हुए हैं। गोया सरकारी खजाना अंधे की गाय हो गया है। जिसकी जितनी कूबत है दुह ले रहा है।
सब की अपनी-अपनी प्यास है साहब, कोई खुश है तो फिर कोई उदास है साहब। किसानों को पानी की प्यास, नेता और अधिकारियों को दौलत की प्यास, नक्सलियों को खून की प्यास। साहित्यकारों को छपास की प्यास, मगर ईमानदारी की प्यास वाले लोग तो लगता है खल्लास हो चुके हैं।
प्रदेश की सारी व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है। यहां सिर्फ दावे हैं क्रियान्वयन नहीं। सरकार अगर असल में सुराज की सरकार है तो उसको सबसे पहले तो धरातल पर जाकर काम करना होगा। लोगों की प्यास बुझानी होगी। उनके रहने और उनको आर्थिक तंगी से उबारना होगा। सिर्फ उद्योगपतियों की हिमायत करने से कुछ नहीं होने वाला। यहां आने वाले उद्योगपतियों को भी चाहिए कि वे भी समाज और गांवों के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। सिर्फ संसाधनों के दोहन करने मात्र से कुछ खास नहीं होने वाला। सरकार अब कथनी से ज्यादा करनी पर ध्यान देना होगा, अगर वे ऐसा नहीं करते तो फिर जनता का विश्वास अब शासन-प्रशासन से उठने लगा है। वो दिन दूर नहीं जब जनता का ये आक्रोश

सड़कों पर उतरेगा तो इनसे जवाब देते नहीं बनेगा। जनता इनसे इनके कारनामों का हिसाब मांगेगी।
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