दुर्दिन भोगती शिक्षा



झुलस रहे हैं यहां छांव बांटने वाले, वो धूप है कि शजऱ इलतिजाएं करने लगे।


प्रदेश में शिक्षा की क्या स्थिति है, इसको अगर देखना हो तो फिर बस्तरांचल के दुर्गम इलाकों में जाकर देखिए। जहां न तो बच्चों के बैठने की व्यवस्था होती है और न ही अध्यापकों के। कई स्कूल तो ऐसी हालत में हैं जहां न तो पीने का पानी है और न ही शौचालय। कई माध्यमिक शालाओं की छात्राएं आज भी खुले में शौच के लिए मजबूर हैं। डिमरापाल के एक आश्रम की हालत तो यहां तक खराब बताई जाती है जहां सयानी बच्चियां तक आधा किलोमीटर दूर एक नाले में नहाने के लिए मजबूर हैं। यही नहीं ये लोग उसी पहाड़ी नाले का पानी भी पीते हैं। कांकेर के कई इलाकों में ऐसे स्कूल हैं जो सरपंच की छप्पर में लगते हैं। जरा सी बारिश हुई नहीं कि  छुट्टी कर दी जाती है। इसके बावजूद भी प्रदेश के शिक्षा विभाग के दावे आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं।
राज्य का यही शिक्षा विभाग है जिसने चुपचाप पूरे राज्य में विवादित संत आसाराम की किताबें चलवाई थीं। उन किताबों में तमाम ऐसी अश£ील बातें लिखी गई थीं कि उनको कोई भी अपने बच्चों के सामने बोल तक नहीं पाएगा। मामला सुर्खियों में आया तो हाथों-हाथ किताबें नदारद कर दी गईं। दूसरी गलती नेताजी के संदर्भ में गलत जानकारी को लेकर सामने आई। इसकी भी लीपापोती कर दी गई।  अब इतने काबिल शिक्षा विभाग पर आम जनता को नाज़ हो न हो, सरकार को जरूर गर्व है। सवाल तो यही उठता है कि आखिर शिक्षा विभाग इतनी सारी गलतियां करता क्यों है?
बच्चों की शिक्षा का स्तर कैसा है इसको समझने के लिए कहीं ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। बस शहर के ही किसी सरकारी स्कूल में चले जाइए पता चल जाएगा। अभी हालिया सर्वे में ये जानकारी सामने आई कि आठवीं के छात्रों को सलीके से 20 तक का पहाड़ा नहीं आता। उस पर भी तुर्रा तो ये है कि राज्य के शिक्षकों को सातवां वेतनमान चाहिए। अब इनसे कौन पूछे कि गुरुजी आप पढ़ाते कितना हैं?
लोगों की जेब से जाने वाले एडूसेस का किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है। इसका नजारा सरकार के दूसरे आदेश में देखिए जहां प्रदेश के लोकनिर्माण मंत्री राजेश मूणत ने तीन दिनों पहले घोषणा की कि प्रदेश में 1117 स्कूल भवनों का निर्माण कर दिया गया। ये कहां-कहां बनाए गए इसको मंत्री ने नहीं बताया। तो वहीं विधान सभा के बजट सत्र में राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप ने दावा किया था कि प्रदेश के सभी स्कूलों में शौचालय और पेयजल की सुविधाएं उपलब्ध हैं। ये बयान उन्होंने विधायक अमित जोगी के सवाल पर किया था।
यह भी इस राज्य का दुर्भाग्य है कि यहां के मंत्रियों तक का ज्ञान ही जब इस स्तर का है, तो फिर आखिर उनसे जनता क्या उम्मीद रखे? श्री कश्यप को चाहिए कि वो पहले जाकर अपने ही विधान सभा क्षेत्र का सलीके से दौरा कर के आएं उसके बाद उनकी बोलती अपने आप ही बंद हो जाएगी।  राज्य के शिक्षा विभाग की हालत देखकर संत कबीर दास का वही दोहा याद आता है कि- कथनी मीठी खांड़ सी करनी विष की लोय, कथनी तजि करनी करै विष ते अमृत होय।
सरकार अगर शुरू से ही शिक्षा को लेकर गंभीर होती तो आज शिक्षा के हालात इतने नहीं बिगड़ते। दरअसल यहां ह$कीकत में कुछ और होता है और बताया कुछ और जाता है। सरकार को चाहिए कि समाज के उस आखिरी व्यक्ति को उसकी शिक्षा का अधिकार मिल जाए इसकी मजबूत और पुष्ट व्यवस्था करे। लोगों की जेब से जाने वाले पैसों को यूं ही हवा में न उड़ाए, वर्ना ये जनता है सब कुछ जानती है। मौका आने पर ये खुद ही माकृूल जवाब देगी।

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