दूसरे भगवान का सितम


उसने यूं ज़ुर्म रवां रक्खा है, ज़हर का नाम दवा रक्खा है।


हमारे समाज में डॉक्टर्स को दूसरा भगवान कहा जाता है। इनको समाज बड़ी इज्जत से देखता है। इसका मुख्य कारण ये है कि ये हमेशा से समाज और लोगों की सेवा कार्य करते आ रहे हैं, लेकिन अब इस पेशे में ऐसे-ऐसे लोग आ रहे हैं कि जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। राज्य में ऐसे ही डॉक्टर्स के सितम का शिकार आए दिन कोई न कोई निरीह और गरीब आदमी हो रहा है। बिलासपुर के बिल्हा में महिलाओं के गर्भाशय निकालने का मामला हो या फिर अभनपुर का। सब की राम कहानी एक जैसी है। ऐसा ही एक मामला दुर्ग के अग्रवाल नर्सिंग होम में देखने को मिला जहां प्रसव के लिए आई एक महिला की बच्चेदानी को काटकर निकाल दिया गया। इस दौरान उसकी एक नस भी कट गई जिससे अत्यधिक रक्तस्राव के कारण महिला की मौत हो गई। महिला के पति ने मुख्यमंत्री और राजनांदगांव के सांसद अभिषेक सिंह से गुहार लगाई। इन्होंने भी दुर्ग प्रशासन को कार्रवाई का आदेश जारी किया। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंगना व्यवस्था के खिलाफ सवाल खड़े करता है। तो दूसरी ओर ये घटनाएं चिकित्सकों और आम मरीज के बीच की दूरियोंं को बढ़ाती हैं। प्रदेश की राजधानी के एक नामचीन नर्सिंग होम में लाश को भी पैसे नहीं देने के लिए रोक लिया जाता है। बाद में जैसे ही मामला मीडिया में पहुंचता है चुपचाप लाश को परिजनों को थमा कर प्रबंधन चुप्पी साध लेता है।
ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या डॉक्टर्स की संवेदनाएं मरती जा रही हैं? डॉक्टर तो वो भी थे, जिन्होंने अपनी फीस के पैसे लेने की कौन कहे मरीज को अपनी जेब से खाने के पैसे दिए। आज भी तमाम गांवों में ऐसे वैद्य पड़े हुए हैं जो हर किसी का इलाज बिना पैसे लिए करते हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि शायद पैसों के लिए इन डॉक्टर्स की मानवता मरती जा रही है। इसका प्रमुख कारण डॉक्टरी की पढ़ाई पर लगने वाली मोटी रकम हो सकती है। होली की छुट्टियों में जगदलपुर के मेकॉज में बच्ची की डस्टबिन में गिरने के बाद संक्रमित होना, बिना बताए किसी का गर्भाशय तो किसी की किडनी निकाल लेना और उसके बाद उसको फर्जी कागजातों के सहारे दर-बदर भटकने के लिए मजबूर करना आखिर कहां की मानवता है?
इन्हीं डॉक्टर्स की हड़ताल की वजह से देश में तमाम लोगों की मौत हो गई और हमारा शासन और प्रशासन सोता रहा। जब कि भारत के कानून में एक हत्या की सजा,  सजा-ए मौत से लेकर आजीवन कारावास तक की होती है। ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि ऐसे डॉक्टर्स को आखिर क्यों नहीं सजा दी गई। क्या वे मौतें इनकी लापरवाही की वजह से नहीं हुईं? अगर हुईं तो फिर उन मौतों के लिए जिम्मेदार आज भी किसी न किसी अस्पताल में कुर्सियों पर आराम क्यों फरमा रहे हैं? उनको उनकी असल जगह यानि सलाख़्ाों के पीछे क्यों नहीं पहुंचाया गया?
सरकार को चाहिए कि वो ऐसे नक्कारा और अपराधी किस्म के चिकित्सकों का न सिर्फ पंजीयन तत्काल रद्द करे बल्कि उन पर विधिक धाराओं के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए। इससे लोगों का खोया विश्वास वापस आएगा।

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