क्या ऐसे ही होगा ग्राम उदय



 बदन पर चीथड़े और उस पे भी नज़रें जमाने की, इलाही हद भी होती है किसी को आजमाने की।



 बलौदा बाजार के पलारी इलाके के सलोनी गांव में 60 घर जल कर राख हो गए। 3 सौ से ज्यादा लोग बेघर हो गए। घरों में एक दाना भी नहीं बचा। बताया जाता है कि खेत में लगाई आग की चपेट में पूरा गांव आ गया। भला हो गांव वालों का जिसमें से किसी ने विधान सभा अध्यक्ष गौरी शंकर अग्रवाल को इसकी सूचना दे दी थी। उसके बाद तो कलेक्टर, एसपी और तहसीलदार भी मौके पर पहुंच गए। दमकल की गाडिय़ों और स्थानीय लोगों की भरपूर मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया।  कड़ाके की गर्मी और तपती हवाएं और 3 सौ से ज्यादा लोगों के लिए आसमान ओढऩा और धरती बिछौना बनी है। मुख्यमंत्री ने राहत की घोषणा की है मगर वो कब मिलेगी पता नहीं। इतनी बड़ी दुर्घटना होने के बाद भी अभी तक राज्य का कोई भी कद्दावर नेता उन गरीबों से मिलने नहीं पहुंचा है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि  क्या यही है हमारी सरकार की जागरूकता? इसी के बल पर हमारे नेता खुद को जन हितैशी होने का दम भरते हैं? क्या इनका आम जनता के प्रति कोई दायित्व नहीं है? और अगर है तो फिर उसका निर्वहन क्यों नहीं करते?
राज्य सरकार एक ओर ग्राम उदय देश उदय का आगाज़ कर चुकी है। ये दुर्भाग्य की बात है कि सलोनी का हादसा भी ठीक उसी दिन पेश आया जिस दिन देश के प्रधानमंत्री ने ग्राम उदय और देश उदय के अभियान की शुरुआत की। प्रदेश में वैसे भी किसानों के दिन काल खराब ही चल रहे हैं।  इसके बाद भी नेताओं की अनदेखी से लोगों को गहरा धक्का लगा है। लोगों का मानना है कि  जब इनका वोट लेने का मतलब होता है तब तो गांवों में दौड़े-दौड़े चले आते हैं। अब - जब कि उनकी गांवों में दरकार है तो फिर किनारा कसते दिखाई दे रहे  हैं। ऐसी सियासी मशीनरी का क्या भरोसा?
किसानों और ग्रामीणों की हमदर्दी हासिल करने का भाजपा के हाथ में एक अच्छा मौका हाथ में था। इसको अगर भाजपा के नेता भुना लेते तो कुछ हद तक सूखा राहत राशि और किसानों के आक्रोश को ये कम कर सकता है।  भाजपा के रणनीतिकार अगर जरा सी भी चौकसी दिखाते तो लोग उसकी पुरानी गलतियों को भुलाने को तैयार हो जाते, मगर दूर-दूर तक ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं देता। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या ऐसे ही होगा ग्राम उदय?

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