विमान निर्माता कंपनियों का भारत मोह



ठहर के पांव के कांटे निकालने वाले, ये होश है तो ज़ुनूं कामयाब होगा क्या?


राफेल की डील में डिले होने के बाद अब  अमेरिका के एफए -18 सुपर हार्नेट बनाने वाली कंपनी लॉकहीड मार्टिन की निगाहें भारत पर लगी हैं। घाटे से जूझ रही अमेरिका की लॉक हीड मार्टिन  भारत में इसका संयंत्र भी लगाने को उत्सुक है। ब्रिटेन की ग्रिपेन भी इस बारे में पहले ही ऑफर भारत को दे चुकी है। ऐसे में लड़ाकू विमान निर्माता कंपनियां अगर भारत का रुख करती हैं तो ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया की सबसे बड़ी सफलता है। उधर रूस में अपनी परीक्षण उड़ाने भर रहा सुखोई टी-50 और भारत का तेजस मार्क 4 भविष्य के ऐसे लड़ाकू विमान हैं। जो किसी भी देश की भीतरी सीमा में जाकर उसको तहस-नहस कर सकते हैं।  चालबाज चीन की भारत को घेरने की काट भी यही होगी कि भारत में अमेरिका और ब्रिटेन और जापान जैसे देशों की कंपनियों की द$खल बढ़ाई जाए। इसके अलावा फ्रांस और रूस भी हमारे पुराने और अहम सामरिक साझेदार हैं। उनकी भी विश्वसनीयता बरकरार रहे, इसके लिए हमें इनकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। इससे एक ओर जहां हमारी चीन पर निर्भरता कम होगी वहीं चीन की अर्थव्यवस्था पर भी आघात पहुंचेगा।
पाकिस्तान और चीन के आपसी गठजोड़ को जवाब देने के लिए भारत को अपने इन तमाम मित्र राष्ट्रों से आपसी संबंध बनाकर रखने होंगे।
ये बात भी लड़ाकू वायुयानों के जानकार मानते हैं कि राफेल के आगे अमेरिका का एफए सुपर हॉर्नेट कहीं नहीं टिकता। न तो ये उतना वजन उठा सकता है और न ही इसकी स्पीड ही राफेल के बराबर है। सुपर हॉर्नेट की रफ्तार जहां बामुश्किलन दो हजार किलोमीटर प्रति घंटे भी नहीं है और ये 17 टन का वजन उठा सकता है। तो वहीं राफेल ढाई हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ता है और ये 24 टन वजन ले जा सकता है। इसके अलावा राफेल की दूसरी खासियत है कि ये पानी के जहाज पर भी आसानी से लैंड कर लेता है और उड़ान भी भर लेता है।  इसमें भी दो इंजन हैं। अत्याधुनिक इलेक्ट्रानिक यंत्रों से लैस ये जहाज दुनिया के किसी भी मिसाइल को चकमा देने की ताकत रखता है। चीन ने रूस से जो एस -400 मिसाइलें खरीदने जा रहा है। दुनिया में सिर्फ राफेल ही ऐसा विमान है जो इन मिसाइलों को चकमा देने की ताकत रखता है। ऐसे में अगर भारत राफेल की डील को ठुकराता है तो ये उसकी सबसे बड़ी सामरिक भूल होगी।
भारत अमेरिका का एफए-18 सुपर हॉर्नेट जरूर खरीदे और उसका संयंत्र भी लगाए मगर राफेल भारत की सबसे बड़ी जरूरत है। इस बात को सरकार और सेना दोनों को समझनी चाहिए। महज थोड़ी सी रकम के लिए इतने बड़े सौदे को हाथ से जाने देना भला कहां की समझदारी है? ऐसे में कोशिश तो ये होनी चाहिए कि मेक इन इंडिया को अगर मोदी को सफल बनाना है तो उनको इन तीनों ही कंपनियों को भारत में विमानों के निर्माण को तत्काल मंजूरी दे देनी चाहिए। सरकार  और उसके अहलकारों का इस मुद्दे को लटकाना एक ओर जहां मेक इन इंडिया पर सवाल खड़े कर रहा है। वहीं भारत की प्रतिष्ठा को भी इससे नुकसान हो रहा है। हमें अगर अपने देश के बेरोजगारों की चिंता है तो हमें हर हाल में इन कंपनियों के साथ तत्काल डील कर लेनी चाहिए। इससे देश को जहां अत्याधुनिक विमानों की ताकत हासिल हो जाएगी ,वहीं हमारे बेरोजगारों को रोजगार और हमारी अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

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