पेट और हेलमेट


आदमी यूं ही नहीं बेंचता ईमान अपना, भूख इंसान को गद्दार बना देती है।


हेलमेट और पेट का गहरा त-आल्लुक है। हमारी यात्रा को सुरक्षित रखने का काम तो ये करता ही है। बहुत से परिवारों का पेट भी भर रहा है। मसलन इसको बनाने वाले, बेंचने वाले, लागू करने और करवाने वाले तमाम लोगों का कल्याण हो रहा था।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण तो उस समय देखने को मिला जब कलेक्टर ने ये फरमान आया कि बिना हेलमेट वालों को पेट्रोल नहीं मिलेगा। मीडिया ने उनकी इस काली दाल को खबरों की छौंक लगा कर जनता के सामने परोस दिया। घबराए पेट्रोल पंप मालिकों ने अपने आदमियों के कान खींचे तो उन्होंने इस आदेश को अध्यादेश मानकर इसका पालन करना शुरू कर दिया। इसके बाद तो पुलिस को लगा की खुदमुख़्तार बन बैठी। हेलमेट न लगाने वालों की जांच ऐसे की जाने लगी जैसे इन्होंने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो। जब कि यही पुलिस नामचीन अपाराधियों के साथ कभी शॉपिंग मॉल में तो कभी होटलों में हराम का माल उड़ाते हुए नज़र आ चुकी है।
गरीब लोगों को भी हेलमेट के नाम पर हलाकान किया जाने लगा। जिनकी मजबूरी है कि उनको अपने बच्चों का पेट पालने के लिए पहले तो दोपहिया लेना पड़ा। उसके बाद फिर किसी तरह डीएल बनवाया तो हेलमेट गले अंटक गया। हेलमेट के चक्कर में पुलिस कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिखाई दे रही थी। अब मामला आखिर पेट का जो ठहरा। सबकुछ इतना बढिय़ा चल रहा था कि बुरा हो गृहमंत्री रामसेवक पैकरा का, जिन्होंने इस में ढील का ऑर्डर देकर बैड फील करा दिया।
जितनी ईमानदारी हेलमेट लागू करवाने में की गई। पुलिस अगर अपराधों के नियंत्रण पर इतना जोर लगाती तो राजधानी में अपराधों का ग्रॉफ कभी  इतना ऊपर नहीं उठता। यही नहीं हेलमेट को लेकर जागे कलेक्टर रायपुर भी अगर पहले ही चौकसी दिखाई होती तो उनकी दहलीज पर होने वाले अपराधों में भी कमी आ जाती। गौरतलब है कि कलेक्टोरेट रायपुर क्राइम का वो चौराहा है जहां हर तरह के अपराधी सक्रिय रहते हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि जो अपना ही कैंपस अपराध मुक्त नहीं करवा पाए, वे शहर को कानून सिखा गए। आखिर कुछ तो मजबूरियां रही होंगी।
सरकार अगर वास्तव में हेलमेट को लेकर सख़्त होती है तो हो, मगर इस बहाने जो कुछ लोग अपने-अपनी रोटियां सेंक रहे हैं, उन पर रोक लगनी जरूरी है। आखिर किसी की सूखी रोटियां छीन कर किसी के  मुंह में रसगुल्ले ठंूसना कहां की भलमनसाहत है? इस पूरे अभियान के पीछे कुछ लोगों का अभिमान बोल रहा है। इस लिए कोशिश ये हो कि लोगों को बिना परेशान किए इसको लागू किया जाए।  इससे लोगों को व्यवस्था के नाम पर परेशान करने वाले लोगों की मनमानी पर रोक भी लग जाएगी और सरकार का मनोरथ भी पूरा हो जाएगा।
 यहां जो सबसे जरूरी बात है वो ये कि इनको हेलमेट से ज्यादा जरूरी पहले तो सड़कों पर चलना सिखाना होगा। आलम ये है कि राजधानी में अधिकांश लोग आज भी जहां मर्जी आई वहीं ब्रेक और जहां मर्जी आई उधर से गुजर जाने में विश्वास रखते हैं। यातायात के उसूलों को सलीके से लागू करें दिन से ज्यादा चौकसी रात में बरती जाए। इसके अलावा हाइवे के किनारे की शराब दुकानों को पहले बंद कर दिया जाए, क्योंकि अधिकांश हादसों का कारण शराब ही होती है। हेलमेट रोकें मगर हाइवे पर वाहन चालकों की ब्रेथ एनलाइजिंग भी करें। दोषी पाए जाने पर कठोर कार्रवाई हो ताकि लोगों की यात्रा सुरक्षित हो सकें।

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