सीएम की छवि बिगाडऩे पर तुली पुलिस



प्रदेश के मुखिया एक ओर जहां पत्रकारों की रक्षा के लिए तमाम कायदे कानून बनाते हैं, तो राज्य की पुलिस उन्हीं को ठेंगा दिखाते हुए मनमानी पर उतर आई है। बस्तर में एक-एक कर चार पत्रकारों की गिरफ्तारी से तो यही बात सामने आती है। किसानों की आत्महत्या, फसलों की बरबादी, शिक्षकर्मियों, मितानिनों, रोजगार सहायकों की नाराजगी झेल रहे प्रशासन की बखिया उधेडऩे में पुलिस भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। इसी लिए खिसियाई पुलिस जिस-तिस को लठिया रही है हड्डियां तोड़ रही है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या पुलिस भी अब मुख्यमंत्री के आदेशों की परवाह  नहीं करती? जब अभी ये हाल है तो फिर तीन साल में तो ये सरकार की प्रतिष्ठा को कितना नुकसान पहुंचाएंगे?ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
लोगों का व्यवस्था से उठता विश्वास कहीं घातक न साबित हो

रायपुर।
बस्तर में पत्रकारों की गिरफ्तारी-
बस्तर में अब तक एक -एक करके चार पत्रकारों को गिरफ्तार कर चुकी पुलिस ने सीएम के उस आदेश को भी ठेंगा दिखा दिया, जिसमें ये कहा गया था कि पत्रकारों के किसी भी मामले को लेकर पुलिस का रवैया कठोर न हो। पत्रकारों का उत्पीडऩ नहीं होना चाहिए। उनके मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या मुख्यमंत्री के उस आदेश का पुलिस ने पालन किया? अगर नहीं किया तो क्यों?
मंत्री की कार पर उल्टा तिरंगा, और पुलिस चुप-
 राष्ट्रीय ध्वज उल्टा लटकाने के आदी हो चुके नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल हमेशा ही सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसे कारनामें करते रहते हैं। इससे पहले 14 जुलाई 2015 में भी उनकी सरकारी गाड़ी पर उल्टा तिरंगा फहराया गया था। इस बात की मय फोटो पुलिस अधीक्षक रायपुर से शिकाय भी की गई थी। मजेदार बात तो ये कि इस मामले को आठ महीने हो चुके हैं मगर आज तक इसमें पुलिस ने किसी से पूछताछ तक नहीं किया। शिकायकर्ता कुणाल शुक्ला ने बताया कि इस मामले के गवाहों तक से पुलिस ने मामले की जानकारी लेना या फिर किसी भी तरह की जांच तक को वाजिब नहीं समझा।
क्या खबरों में बने रहने के लिए करते हैं ऐसा-
वरिष्ठ भाजपा नेता और नगरीय निकाय मंत्री के इस कारनामें पर लोगों का कहना है कि कहीं वे खबरों में बने रहने के लिए तो ऐसा नहीं करवा रहे हैं? तिरंगे का तिकड़म भिड़ाना कहीं मंत्री को भारी न पड़ जाए?
वैसे भी नसबंदी कांड के बाद से इनके दिन काल ठीक नहीं चल रहे हैं।
पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान-
राजधानी की जांबाज पुलिस जिसने हेलमेट नहीं लगाने पर एक युवक की सरेआम पिटाई करके हालत बिगाड़ दी। वही पुलिस इस राष्ट्रद्रोह की श्रेणी वाले अपराध पर आखिर चुप्पी साधे क्यों बैठी है? ये घटनाएं ही पुलिस की दोगली मानसिकता को दर्शाने के लिए काफी हैं।
खुद पुलिस वाले उड़ाते हैं यातायात नियमों की धज्जियां-
जो पुलिस दूसरों को कायदे कानून की नसीहत देती है, उसी के जवान सरेआम यातायात के नियमों को ठेंगा दिखाते हैं। एक बाइक पर तीन लोग उसमें भी बिना हेलमेट के दो। ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि क्या ये सुप्रीम कोर्ट के उस दिशा -निर्देश का उल्लंघन नहीं है? जिसमें ये कहा गया है कि दोपहिया वाहनों पर बैठने वाले को भी हेलमेट पहनना जरूरी है।

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