निगम के ठेंगे पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश




15 लाख की जनसंख्या पर महज 2060 सफाई कर्मचारी

 नगर पालिक निगम के चेयर पर बैठे मेयर नहीं कर रहे हैं शहर की केयर। सफाई के मामले हो गए हैं रेयर। न सफाई, दवाई और न ही स्वच्छ पानी और न मलेरिया से निपटने वाली मेडिकेटेड मच्छरदानी, ह्वाइट हाउस की यही है कहानी। देश के 6वें सबसे गंदे शहर का गौरव प्राप्त पुरानी राजधानी के महापौर नहीं कर रहे सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों पर भी गौर। ऐसे में सबसे अहम सवाल तो यही है, कि ये फिर आम जनता की भला क्या सुनेंगे?

रायपुर। कचरे के ढेर पर बैठी पुरानी राजधानी की रामकहानी भी कुछ ऐसी है कि ऐसी कोई गली या मोहल्ला नहीं दिखाई देता जहां कूड़ा न बिखरा हो। टैक्स लेकर रिलेक्स करने वाले ह्वाइट हाउस के अधिकारियों ने पूरे शहर को कूड़ेदान बनाकर रख दिया है। लोगों से टैक्स तो पूरा वसूला जा रहा है मगर उनके मूल अधिकारों की जैसे ही बात आती है, निगम के अधिकारी कर्मचारी ही नहीं महापौर तक बगलें झांकने लग जाते हैं।
देश का छठवां सबसे गंदा शहर-
इन्हीं की कृपा है कि प्रदेश की पुरानी राजधानी को देश का 6वां सबसे गंदा शहर होने का कलंक झेल रहा है। इसका सबसे बड़ा करण है सफाई कर्मियों की कमीं। यहां 15 लाख की आबादी  पर सिर्फ 2060 सफाई कर्मचारी हैं। जब कि कम से कम 45 सौ कर्मचारी होने चाहिए। ये आंकड़ा ही ये बताने के लिए काफी है कि पूरे शहर में सफाई की क्या स्थिति होगी?
महापौर ने खुद माना कि कम हैं कर्मचारी-
हमारी सरकार के साथ दूरभाष पर हुई बातचीत के दौरान भी रायपुर के महापौर प्रमोद दुबे ने ये खुद स्वीकार किया कि निगम में सफाई कर्मचारियों की काफी कमी है। तो वहीं उन्होंने लगे हाथ ये दोष भी राज्य सरकार पर ये कह कर मढ़ दिया कि राज्य सरकार उनको सहयोग नहीं कर रही है। वो जो कुछ भी कर रहे है अपने संसाधनों से कर रहे हैं।
न सफाई न पानी, नगर निगम की यही कहानी-
ऊपर से झकाझक सफेद दिखाई देने वाली इस आलीशान बिल्डिंग के भीतर चलने वाले कारनामे इतने स्याह हैं कि सुनने वाले भी आसानी से य$कीन नहीं कर पाएंगे। निगम सप्लाई किए गए पानी में कभी केंचुए, जोंक तो कभी-कभी पानी वाला सांप तक निकला पाया गया है। इसके अलावा कई वार्ड ऐसे भी हैं जहां पानी के नाम पर भी मारपीट होना आमबात है।
मेयर के आवास के  बगल ही बिकता है पानी-
कहीं दूर कुछ होता तो कोई बात नहीं, महापौर के सरकारी आवास के बगल ही नलघर से 500 से लेकर 7 सौ रुपए प्रति टैंकर की दर से पानी बेंचा जाता है। यही नहीं यहां गर्मियों में गाडिय़ों को पेयजल से धोया जाता है। वहीं नगर की जनता को पानी के लिए मशक्त करनी पड़ती है।

क्या है जोन दफ्तरों के हालात-
पूरे 70 वार्डों के जोन दफ्तरों में जहां 6 अधिकारी होने चाहिए वहीं महज 4 स्वास्थ्य अधिकारियों से काम करवाया जा रहा है।
नाक पर रूमाल रखकर गुजरते हैं लोग-
नरैया तालाब के बगल से गुजरने वाली सड़क के बगल ही तालाब को बड़े आराम से पाटा जा रहा है। कालीबाड़ी में चलने वाली मांस -मटन की दुकानों की गंदगी को यहां फेंका जा रहा है। इसके अलावा मेडिकल कचरे को भी यही डाला जा रहा है। गंदगी का आलम ये है कि यहां से गुजने वाले लोग नाक पर रूमाल रखकर गुजरते हैं।
निगम के सामने की सड़क बनी गैरेज-
शाम से लेकर रात 12 बजे तक नगर निगम के सामने वाली सड़क के किनारे दो पहिया और चार पहिया वाहनों की लंबी कतार आप देखकर हैरान हो जाएंगे। यहां निगम के उद्यान में चहल कदमी करने आने वाले लोग अपने वाहनों को सड़क के किनारे छोड़कर मस्ती से गार्डन में चहल कदमी करते हैं। वहीं से गुजरने वाली कोतवाली पुलिस के लोग इनको टोकते तक नहीं।
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का दिशा निर्देश-
सुप्रीम कोर्ट का दिशा निर्देश कहता है कि 1 हजार की आबादी पर कम से कम 3 सफाई कर्मचारी होने चाहिए।
1.20 लाख जनसंख्या पर -
 1 कार्यपालन अभियंता
 1 असिस्टेंट एक्जिक्यूटिव इंजीनियर
 1 सफाई निरीक्षक, एक एक्जिक्यूटिव सैनिटरी इंस्पेक्टर, एक सह स्वच्छता निरीक्षक, एक सहायक स्वच्छता निरीक्षक और वार्ड सुपरवाइजर होना चाहिए। यहां ये भी स्पष्ट कर देना जरूरी होगा कि कम से कमतर स्थिति में इतना होना चाहिए।
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वर्जन-
मैं ये स्वीकार्य करता हूं कि निगम में सफाई कर्मचारियों की कमी है। हम  अपने संसाधनों के अनुरूप इसमें सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रमोद दुबे
महापौर
रायपुर।
 आयुक्त ने नहीं उठाया फोन-
मामले के संदर्भ में निगमायुक्त सारांश मित्तर का पक्ष जानने के लिए जब उनके मोबाइल 758269800 और 9827192312 पर लगातार फोन लगाया गया। सुबह से लेकर अपरान्ह डेढ बजे तक प्रयास करने के बावजूद भी लगातार घंटियां बजती रहीं और उन्होंने फोन नहीं उठाया। इससे साफ समझ में आता है कि हमारे आयुक्त कितने जिम्मेदार हैं।

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