भालू की लाश में जवाबों की तलाश-


छछान पहाड़ी से छीजते सवाल

जामवंत का दुखद अंत
एंट्रो- गुरुवार को गुर्राती उस मादा भालू के रास्ते में जो भी आया उसने गुस्से में किसी को नहीं छोड़ा। डिप्टी रेंजर सहित तीन को मार गिराने के बाद भी नहीं भागी। आखिरकार महासमुंद की पुलिस ने उस पर अत्याधुनिक हथियारों से ताबड़तोड़ गोलियां दाग कर उसकी हत्या कर दी।  अब जांच के नाम पर राज्य सरकार का अमला लीपापोती में लगा है। कुछ लोग बाकायदा बहाने खोजने तो कुछ अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। उस मादा भालू की लाश से जवाबों की तलाश कर रही है हमारी सरकार की टीम। ऐसे ही तमाम सवालों पर के लिए पढि़ए ये पोस्टमार्टम.....
रायपुर। महासमुंद के छछान पहाड़ी पर पुलिस एन्काउंटर में मारी गई मादा भालू की हत्या के पीछे  क्या कारण थे?

 तीन दिनों से भूखी थी मादा भालू-
पुलिस ने जिस मादा भालू को आदमखोर बताकर गोलियों से भूना, असल में वो एक मादा भालू थी, जो 3 दिनों से भूखी बताई जाती है। उसके 3 बच्चे भी बताए जाते हैं।
आदमखोर नहीं थी वो-
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार अगर वो आदमखोर होती तो उसके पेट में मानव मांस का कुछ हिस्सा पाया जाता। जब कि उसके पेट में कुछ भी नहीं पाया गया, जो ये साबित करता है कि वो भूखी थी।
क्यों नहीं बुलाई ट्रेंकुलाइजिंग टीम-
रायपुर से जाने वाली ट्रेंकुलाइजिंग टीम का आखिर क्यों इंतजार नहीं किया गया। ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी कि उसको आनन-फानन में गोलियों से छलनी कर डाला गया?
क्यों हुई हिंसक-
मादा भालू के हिंसक होने का कारण उसकी भूख हो सकती है। क्योंकि दीमकों की बांबी महुआ और शहद भालुओं के पसंदीदा भोजन होते हैं। महुए के पेड़ों को तो सड़क के ठेकेदारों ने तारकोल गरम करने में उपयोग के लिए कटवा लिया। ऐसे में जो कुछ थोड़े पेड़ बचे हैं वो बाहरी इलाकों में हैं। इसी महुए की तलाश में भालू बाहर आई होगी। भूखे जंगली जानवर को अगर खाते वक्त जरा सा भी रोका टोका गया तो वो हिंसक हो जाता है। यही कारण है कि वो मादा हिंसक हुई ।
कहां गई सरकार की जामवंत योजना-
राज्य सरकार ने भालुओं के सुरक्षित रहवास, उनके खाने पीने की चीजों की व्यवस्था करने के उद्देश्य से जामवंत योजना बनाई थी। जिसमें ये दावा किया गया था कि भालुओं के लिए जंगल में ही सारी सुविधाएं मुहैय्या करवाई जाएंगी। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर कौन खा गया भालुओं के हिस्से का खाना?
कहां रह गए पशु चिकित्सा विशेषज्ञ-
राज्य के इकलौते कामधेनु विश्वविद्यालय में सिर्फ पशुओं के विशेषज्ञों की एक लंबी फेरहिस्त है। ऐसे में क्यों उनकी सेवाएं नहीं ली गईं?
 जंगल सफारी को लेकर भी सवाल-
ऐसे में सवाल तो ये भी उठना लाजिमी है कि जिस जंगल सफारी को लेकर राज्य सरकार बड़े-बड़े दावे करती आ रही है। कभी अगर ऐसी स्थिति वहां उत्पन्न हुई तो भी क्या पुलिस ऐसा ही एक् शन लेगी?
 पुलिस के प्रशिक्षण पर भी सवाल-
महासमुंद पुलिस के जांबाज जवानों ने एके-47 और एसएलआर जैसे अत्याधुनिक हथियारों पर जमकर हाथ आजमाया। बताया जाता है कि सौ से ज्यादा गोलियां दागी गईं। जब कि महज 16 गोलियां ही भालू के शरीर में मिलीं। बाकी गोलियां कहां गईं इसको लेकर लीपापोती जारी है।
ये हैं जांच के तमाम सरकारी बिंदु-
-भालू को शूट आउट करने का आदेश किन परिस्थितियों में दिया गया?
-शूट आउटर की परमिशन नहीं थी। किसके आदेश से लिया फैसला?
-भालू जंगल में था। फिर वहीं क्यों नहीं रोका गया। गोली क्यों मारी गई?
-मुख्यालय को कब बताया गया।

 उस वक्त कहां थे महासमुंद के डीएफओ जब-

-नवागांव के जंगल में सुबह 10 बजे 65 वर्षीय धनसिंह दीवान को भालू ने मार डाला।
-10 मिनट के भीतर साइकिल से जा रहे युवक को भी मार डाला।
-दोपहर 12 बजे डिप्टी रेंजर एक बीट गार्ड के साथ पंचनामा करने पहुंचे। कुछ ग्रामीणों को लेकर वे स्पॉट पर पहुंच गए।
-भालू वहीं छिपा था। उसने डिप्टी रेंजर पर हमला कर दिया। डिप्टी रेंजर की मौत हो गई।
-डिप्टी रेंजर की मौत की खबर फैलने के बाद पुलिस और वन विभाग के अफसरों ने भालू को मारने ऑपरेशन चलाया।
अब कुर्सी बचाने में लगे अधिकारी-
भालू को मारने के पहले किसी से अनुमति नहीं ली गई थी। -बीएन द्वेदी, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन
एसडीओ महासमुंद ने लिखित आदेश दिया था आप महासमुंद आइए मैं आदेश की कापी आपको दे दूंगा। -राजेश कुकरेजा, महासमुंद एडिशनल एसपी
वन मुख्यालय से मौखिक मंजूरी के बाद ही भालू को शूट किया गया।
- ए. श्रीवास्तव, एसडीओ फॉरस्ट

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