साख पर सियासत

तेरा निज़ाम है सिल दे जुबान शायर को,  ये एहतियात ज़रुरी है इस बहर के लिए । 



सियासत की सांसत भोग रही  कांग्रेस को उसी के खेवनहार, मजधार में डाल कर मजे ले रहे हैं। दिल्ली जाकर खुद को पार्टी का सबसे बड़ा शुभङ्क्षचतक साबित करने की होड़ के लिए दौड़ लगा रहे नेताओं का आलम ये है कि इनके खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं। सियासी गलियारों के जानकारों का तो ये भी मानना है कि डॉक्टर चरणदास महंत, मोतीलाल वोरा, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव और अजीत जोगी समेत ऐसे तमाम नेता हैं, जो सत्ता पक्ष के इशारे पर काम कर रहे हैं। अजीत जोगी का मामला तो सीडी कांड में खुलकर सामने आ गया। वहीं बजट सत्र की शुरुआत के दिन अमित जोगी की सीट को लेकर जिस तरह से सत्ता पक्ष लामबंद हुआ वो अपने आप में ही बहुत कुछ कह जाता है। इसके अलावा क्षत्रिय महासभा के मंच पर भी लोगों ने टीएस सिंहदेव और डॉ. रमन सिंह को जय और बीरू का खिताब दे चुके हैं। कांग्रेसियों का एक तबका तो खुलेआम बोलता है कि इस मामले में भूपेश बघेल ही अकेले लड़ते दिखाई दे रहे हैं। वैसे भी ये कांग्रेस और भाजपा की नूराकुश्ती से ज्यादा कुछ भी नहीं है। एक तरह से अगर देखा जाए तो प्रदेश में कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।
भितरघात और आपसी कलह को अपनी-अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना चुके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पर पार्टी के ही कद्दावर नेता अजीत जोगी जिस तरह से हमलावर हो रहे हैं,वो भी कांग्रेस की दशा-दिशा बताने के लिए काफी है। भाजपा के कद्दावर लगातार कांग्रेस को किसी न किसी तरह एकजुट होने पर रोकने के लिए जी-जान लगाए पड़े हैं। तो वहीं ऊपरी स्तर पर सारी गतिविधियां तो बड़े बंगले से लेकर सागौन बंगले और राजकुमार कालेज से संचालित हो रही हैं। कांग्रेस भवन तो सिर्फ एक सिंबल बन कर रह गया है।
कांग्रेस को अगर प्रदेश में अपनी साख बचानी है तो उसे अपनी आंख खोल कर काम करना होगा। उसे विपक्ष की भूमिका में पूरी मजबूती के साथ नजर आना होगा। तभी जनता के मन में कांग्रेस को लेकर पहले वाली आस्था वापस लौट सकेगी। इसके अलावा प्रदेश की सत्ता में वो अपनी वापसी कर सकेगी, हालांकि ये अभी भी काफी दूर की कौड़ी लग रही है। 

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