विधायकों का बढ़ता वेतन भत्ता


काजू भुनी प्लेट में व्हिस्की गिलास में,  उतरा है रामराज बिधायक निवास में ।


प्रकृति की दोहरी मार से बेहाल किसान, गरीबी का दंश झेल रहे आदिवासी,नक्सलवाद, बेरोजगारी और अशिक्षा जैसी समस्याओं से त्रस्त राज्य के विधायकों का वेतन बढ़ाने की तैयारी वास्तव में चौंकाने वाली है। यहां सिर्फ बड़े-बड़े नामों वाले विधायकों के कारनामों की असल सच्चाई ये है कि इनमें से अधिकांश अपनी विधायक निधि तक को पूरी तरह खर्च नहीं कर पाते हैं। विकास के नाम पर जो घटिया दर्जे का मजाक जनता के साथ किया जाता है। उसका खामियाजा किसी न किसी निर्दोष को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है। इन सबसे ज्यादा तकलीफदेह बात तो ये है कि यहां सभी को सिर्फ विधायकों के वेतन की पड़ी है। उस जनता की फिकर किसी को भी नहीं है जो उस आम आदमी को अपना कीमती वोट देकर खास बनाती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो आम आदमी हाशिए पर जाता दिखाई दे रहा है। खुद खाया और जो बचा उसको अधिकारियों-कर्मचारियों को खिलाया। काम की बात करना इनसे सरासर बेमानी है। जनता की सेवा के नाम पर भरपेट मेवा खाने वाले नेताओं की नियत का पता इसी बात से चलता है कि जैसे ही अपनी तनख्वाह और भत्ते की बात सामने आती है हर कोई इक_ा हो जाता है। आपसी खींचतान यहां तत्काल किनारे रख दी जाती है। जिस राज्य में कुपोषण के चलते तमाम बच्चों की मौत हो जाती हो। जहां तीन महीनों में सौ से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हों। जहां गरीब आदिवासियों को नक्सली बेवजह पुलिस का मुखबिर बताकर सरेआम जनअदालत लगाकर बर्बरता से उनकी हत्या कर देते हों, और भीड़ तमाशबीन बनी देखती रह जाती हो। जहां अभी भी तमाम ऐसे लोग हैं जिन्होंने कभी पक्की सड़क आंखों से नहीं देखी। जहां एक गरीब महिला अपनी बकरियां बेचकर शौचालय तो बनवाती है, मगर वहां की सरकार अपनी इस सबसे बड़ी नाकामयाबी को प्रधानमंत्री के सामने कामयाबी बताकर पुरस्कृत होती है। जहां आज भी कोई अपनी पेंशन के टेंशन में तो कोई राशन और किरासन के चक्कर में सरकारी दुकानों और दफ्तरों के चक्कर लगा रहा हो। जहां सरकारी अधिकारी फरियादियों को धकियाते और दुरियाते दिखाई देते हों। उस राज्य में विधायकों का वेतन बढ़ाया जाना कितना जरूरी है? लोक की सेवा के लिए बनाया गया सरकारी तंत्र अब उसी लोक को हाशिए पर रखकर खुदमुख़्तार बनता जा रहा है। काम के नाम पर आराम और जिम्मेदारियों के नाम पर धड़ाम हो जाता हो।  ऐसे में सिर्फ एक ही सवाल जेहन में आता है कि  वेतन आपने खुशी से तय कर लिया, मगर विधायकों की जिम्मेदारी आखिर कौन तय करेगा? क्या इनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?

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