कौन सुनेगा अन्नदाता की पुकार



बंजर ज़मीन पट्टे में जो दे रहे हैं आप,  ये रोटी का टुकड़ा है मियादी बुखार में ।


फसलें तो पहले भी बर्बाद होती थी, लेकिन उसकी चिंता में सिर्फ किसान दोहरे होते थे। इस बार फसल बीमा योजना लागू होने के बाद किसानों के साथ सरकार की भी अग्निपरीक्षा है। यह हर किसी के संज्ञान में है कि छत्तीसगढ़ के तमाम जिलों में खेती चौपट हो गई है। बेमौसम बारिश और ओले इस बार खलनायक बन बैठे। सूखे की मार से अभी राज्य का अन्नदाता उबर भी नहीं सका था कि बारिश-ओलों ने उनकी कमर तोड़ दी। बहरहाल, फसल बर्बाद होने पर किसानों को मुआवजा देने वाली सरकारी व्यवस्था में इतने पेच हैं कि फिलहाल इससे किसानों को राहत मिलना मुमकिन नहीं है। खेती की जब भी बात आती है, सियासी पंैतरे भी उसी हिसाब से खेले जाने लगते हैं। पहले धान की फसल सूखे की भेंट चढ़ी और अब रबी की फसल के अलावा सब्जियों की खेती भी पूरी तरह चौपट हो गई। राज्य के कई इलाकों में तो आलू के आकार वाले ओलों ने सब्जियों के साथ ही साथ दलहन और तिलहन की फसलों को बर्बाद कर दिया। धान के घमासान और उसके बाद अपसी खींचतान से जूझ रही प्रदेश की एक मात्र विपक्षी पार्टी सदन में चुप्पी खींचे बैठी है। अलबत्ता किसानों को ये बताया जा रहा है कि पिछले साल हुई दलहन के बंपर उत्पादन के लिए राज्य को केंद्र सरकार की ओर से चौथी बार कृषि कर्मण पुरस्कार ने नवाजा जाएगा। पर ये किसी ने भी नहीं बताया कि अगर राज्य में दलहन उत्पादन इतना अच्छा हुआ था तो फिर दाल 2 सौ रुपए किलो तक कैसे बिकी? जमाखोरों के गोदामों ने हजारों टन दाल कैसे उगली। फिर उन्हीं दलालों की एक घुड़की पर सरकारी अमले की सारी हेकड़ी कैसे छूट गई और कार्रवाई बंद कर दोबारा सो गए?
सवाल ये है कि आखिर कहां गए किसानों के हिमायती? क्यों नहीं सदन को प्रदेश के किसानों की असल ह$कीकत से रूबरू करवाते?
दो भागों में बंट चुकी राज्य की कांग्रेस पार्टी अपने सियासी पेच के चक्कर में लगी है। तो वहीं भाजपा सरकार इसका भरपूर फायदा उठाने में लगी है।
इतनी बड़ी आपदा के बावजूद भी किसी ने भी किसानों के लिए कुछ भी नहीं कहा। ऐसे में अगले दो-चार दिनों में सब्जियों के दाम आसमान पर पहुंचेंगे इसमें कोई दो राय नहीं है।
प्रदेश की सरकार अगर किसानों को लेकर असल में गंभीर है तो उसे तत्काल किसानों को राहत उपलब्ध करवानी चाहिए। इससे एक ओर जहां प्राकृतिक आपदा की मार से बेज़ार हुए खेतिहरों में शासन के प्रति आस्था जगेगी, वहीं आत्महत्या जैसी घटनाओं में भी कमी आएगी।

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