ये मंत्री और विधायक आखिर कब बनेंगे लायक



एमएलए का वेतन 75 हजार से बढकर होगा 1.25 लाख रुपए मासिक


-पहले डॉटा इंट्री ऑपरेटर्स और फिर तृतीय वर्ग के कर्मचारी, उसके बाद रोजगार सहायक और शिक्षाकर्मियों तक के दल बूढा तालाब के धरना स्थल पर चिल्लाते रहे। अध्यापक अपने वेतन  और किसान मुआवजे के लिए रो रहा है।  उसी राज्य की कैबिनेट ने इन सारी समस्याओं को दरकिनार करते हुए अपने विधायकों और मंत्रियों का वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव पास करवा लिया। अब इसको विधान सभा में संशोधन के लिए पेश किया जाएगा। उम्मीद ही नहीं विश्वास भी है कि वहां भी ये आसानी से पास हो जाएगा। ऐसे में सवाल तो ये उठता है कि आखिर राज्य में किसका वेतन बढाया जाना जरूरी है? उन गरीब रोजगार सहायकों, अध्यापकों, तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों का या फिर इन मंत्रियों और विधायकों का? दूसरा अहम सवाल ये कि वेतन तो सरकार ने बढ़ा दिया पर इनकी जिम्मेदारी कौन तय करेगा? यानि ये बढ़ा वेतन लेने वाले मंत्री और विधायक आखिर कब बनेंगे लायक ?


रायपुर। लोकतंत्र में लोक की सेवा के लिए एक तंत्र का गठन करने की बात बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने अनुवादित कानून में लिखा है। ये तंत्र लोक की सेवा करेगा उसके बदले उसकी जीविका निर्वहन के लिए सरकारी खजाने से वेतन दिया जाएगा। आलम ये है कि अब वही तंत्र देश के खजाने पर न सिर्फ कुंडली मारे बैठा है, बल्कि लोक को जमकर लतिया भी रहा है, और उसकी दूर-दूर तक कोई सुनने वाला नहीं दिखाई देता।
बजट सत्र में होगा अधिनियम में संशोधन-
अपने निहित स्वार्थों के लिए किसी भी कानून को संशोधन के नाम पर तोडऩा विधायकों और सांसदों का शगल बनता जा रहा है। ऐसा ही काम अब छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार भी करने जा रही है। वो अब विधानसभा सदस्य (वेतन-भत्ता)अधिनियम 1972 में संशोधन करने जा रही है। इसकी रूपरेखा बाकायदा कैबिनेट की बैठक में तय की जा चुकी है। ऐसे में राज्य केे विधायकों का वेतन और भत्ता बढ़ा दिया जाएगा। इससे जो खजाने पर बोझ आएगा उसकी भरपाई कैसे की जाएगी? ये सारे सवाल अभी अनुत्तरित पड़े हुए हैं।
कितन बढ़ेगा वेतन-
सामान्य प्रशासन विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों की अगर मानें तो विधायकों को पहले जहां 75 हजार रुपए मिला करते थे अब उन्हीं विधायकों को 1 लाख 10 हजार रुपए बतौर वेतन और यात्रा भत्ते को सालाना 3 से बढ़ाकर 4 लाख रुपए किया जाएगा। इसके अलावा दूसरी सुविधाओं में भी वृध्दि की  जाएगी।
सदन में झूठ बोलते मंत्री-
बजट सत्र में मंगलवार को प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने विधायक अमित जोगी के सवाल के जवाब में सदन में सफेद झूठ बोला। मरवाही विधायक अमित ने स्वच्छ पेयजल और शौचालयों की शालाओं में उपलब्धता को लेकर प्रश्र किया था। जवाब में शिक्षा मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि प्रदेश के सभी स्कूलों में स्वच्छ पेयजल और शौचालयों की व्यवस्था है। आश्चर्य की बात तो ये कि प्रदेश की सबसे बड़ी महापंचायत में मंत्री का ये झूठ स्वीकार कर लिया गया? ऐसे में सवाल तो ये भी उठना लाजिमी है कि क्या ऐसे मंत्रियों का वेतन बढ़ाना जरूरी है? जिनको अपने विभाग की ही पूरी जानकारी नहीं है?
पैसे खर्च करने में फिसड्डी-
प्रदेश के तमाम ऐसे मंत्री और विधायक हैं जो अपनी ही निधि के सारे पैसों का विकास के लिए उपयोग नहीं कर पाते। अपने क्षेत्र से ज्यादा रिश्तेदारियों का दौरा सरकारी गाड़ी से करते हैं। क्या ऐसे विधायकों का वेतन बढ़ाया जाना चाहिए? जिन पर पहले से ही लगे हो दर्जनों आरोप?
 सरकार तय करे जिम्मेदारी भी-
सरकार विधायकों का वेतन तो जरूर बढाए मगर उससे जरूरी बात तो ये है कि इन सभी विधायकों और मंत्रियों की जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए। बेहतर होगा कि इन सभी का वेतन अब इनके काम के आधार पर तय किया जाए। निर्धारित वेतनमान को उसके कार्यों के मूल्यांकन के आधार पर ही दिया जाए। यदि काम नहीं तो फिर वेतन भी नहीं।
आखिर किसका वेतन बढ़ाना जरूरी-
राज्य में मितानिनों और शिक्षकों और तमाम दूसरे कर्मचारियों को पिछले कई महीनों से वेतन के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं मिली है। बावजूद इसके वे काम किए जा रहे हैं। हद तो तब जो गई जब एक शिक्षक ने अपने प्रधानाध्यापक को मजदूरी करने जाने के लिए छुट्टी का आवेदन लगाया और प्रधानाध्यापक ने उसका आवेदन भी पास कर दिया।


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