फिर वही चूक



सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है, इल्ज़ाम आईने पे लगाना फुजूल है।


एक ही तरह की गल्ती और फिर उस पर बहानों और समस्याओं की सियाही मलने की सुरक्षा बलों के अधिकारियों की आदत बनती जा रही है। पिछले दिनों दो सौ जवानों को नक्सलियों के एंबुश में फंसाकर उनको रात भर वहीं रोक देना। घायलों को इलाज के संसाधन मुहैय्या नहीं करवाना, बस्तर में पुलिस प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है। डेढ़ बजे दिन से शुरू हुई  मुठभेड़ पूरी रात तक चलती रही। इसके बाद उसी एंबुश में हमारे जांबाजों को पूरी रात गुजारनी पड़ी। सुबह हुई तब जाकर उनको अतिरिक्त सुरक्षा बलों ने वहां जाकर रेस्क्यू किया। सेटेलाइट फोन से बार-बार फोन किए जाने के बाद भी अधिकारी कान में तेल डाले बैठे रहे?
बस्तर के विद्वान आईजी और नक्सल मामले में सरेंडर के पुरोधा को ये पता नहीं था, कि कवर फायर नाम की भी कोई चीज होती है। किसी भी ऑपरेशन के लिए टास्क किया जाता है? दुश्मनों की खुफिया जानकारियां जुटाई जाती हैं? उसके बाद विशेषज्ञ उस पर काम करते हैं।
दोपहर ही जैसे मुठभेड़ की खबर आई तो रूस से अभी नया-नया आया एमआई 17 वी-5 चौपर क्या कर रहा था? क्यों नहीं स्निपर रायफल लेकर शार्प-शूटर्स को भेज दिया गया? इनके पीछे तत्काल अतिरिक्त बल को रवाना क्यों नहीं किया गया? यहां एक बात और भी साफ हो जाती है कि ये अपनी खुफिया पुलिस की सफलता की कितनी ही बड़ाई कर लें, मगर नक्सलियों की खुफिया के सामने इनकी खुफिया पुलिस बच्चों से भी गई बीती लगती है। यही कारण है कि इनके एक-एक मूवमेंट की खबर नक्सलियों के आकाओं तक आराम से पहुंचती रहती है। ऐसे में अपने साथियों के समर्पण से हताश नक्सली हर हाल में सुरक्षा बलों की हर कवायद पर नजर रखे रहते हैं। मौके -बे मौके वो इनको करारा झटका दे जाते हैं। तो वहीं अधिकारी प्रशासनिक व्यवस्थाओं का रोना - रोकर फिर से चुप्पी साध लेते हैं।
े अधिकारियों को समझना चाहिए कि हमारे लिए हमारा एक-एक जवान बेहद कीमती है। हमने अगर उनको नक्सल मोर्चे पर भेजा है तो उनकी सुरक्षा से लेकर हर जरूरत को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी बनती है। उनको हर तरह की फीडबैक अगर मिलती रहे तो फिर वो और भी कारगर ढंग से नक्सलियों को जवाब देने की पूरी ताकत रखते हैं। ऐसे वक्त में किसी भी प्रकार की लापरवाही उनके बुलंद हौसलों को कमजोर बनाती है। इससे उनमें निराशा भी पनप सकती है। अगर हम नक्सल मोर्चे पर जवानों को भेजने जा रहे हैं तो सबसे पहले उसको लेकर पूरी तैयारी होनी चाहिए। इसको लेकर जब तक सारी जानकारियां और उस चप्पे-चप्पे की जानकारी न मिल जाए, हमें जवानों को वहां नहीं भेजना चाहिए। इससे एक ओर जहां हमारे जवानों का नुकसान कम होगा, वहीें हम बेहतर तरीके से नक्सलियों को सबक भी सिखा पाएंगे।

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