खामी का खामियाज़ा


सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है, इल्ज़ाम आईने पे लगाना फुज़ूल है।



दंतेवाड़ा के मैलावाड़ा में बुधवार को हुए लैंडमाइन विस्फोट में 7 जवानों की शहादत को लेकर एक बार फिर पुलिस की नींद टूटी है। वो भी एक साथ इतने जवानों को खोने के बाद। सवाल तो ये भी उठता है कि आखिर एक ही तरह की गल्तियां सुरक्षाबलों के अधिकारी क्यों दोहरा रहे हैं? जब कि उनको कम से कम इतनी तो समझ होनी ही चाहिए कि अपराध कहां होता है? सीधी सी बात है कि जहां हिफाज़त से ज्यादा विश्वास हो। ऐसे में इनको इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि नक्सली और उनके मुखबिर हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। इनके एक-एक मूवमेंट की सूचना उन तक पहुंच रही है। इसके बावजूद भी सुरक्षा को दरकिनार किया गया।
हमारे जांबाज आईजी नक्सल को क्या अपराध शास्त्र की इतनी सी भी जानकारी नहीं है? अगर थी तो फिर ये गलती आखिर कैसे हुई और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ऐसी गलतियां दोबारा न हों इसके लिए सुरक्षा के क्या उपाय किए गए? जवानों को सिर्फ लड़ा देना ही बहादुरी नहीं होती, हर अच्छे सेनापति का ये नैतिक दायित्व होता है कि वो इस बात की पूरी कोशिश करे कि सैनिकों का नुकसान कम से कम हो। 
जब कि इनको ये भी पता है कि हमारी एक-एक गतिविधियों की पूरी सूचना नक्सलियों के पास पहुंच रही है। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी लापरवाही क्यों बरती गई? हर बार एक ही तरह की लापरवाही क्यों?
काफी दिनों से शांत हुए नक्सलियों को लेकर ये कयास लगाया जा रहा था कि वे जरूर किसी न किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिरा$क में हैं। ठीक वैसा ही हुआ और उन लोगों ने इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दिया।
कुशल ये हुई कि गाड़ी के भीतर जवानों की तादाद कम थी।
फिर भी जवान तो आखिर जवान ही होता है। हमारे लिए तो हमारा एक-एक जवान बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में अगर हमारी किसी भी लापरवाही के चलते अगर हमारे जवानों को नुकसान होता है, तो हमें तत्काल उसकी गहन समीक्षा कर उसका निराकरण विशेष प्रभाव के तहत किया जाना चाहिए।
देश की आईजी नक्सल से यही उम्मीद है कि वे भविष्य में ऐसी किसी भी गलती को नजरंदाज करने से पहले कम से कम तीन सौ बार सोचेंगे। इससे न सिर्फ जवानों का बल्कि हर उस नागरिक का मनोबल टूटता है जो देश भक्त है।

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