महापंचायत का अन्याय



ज़मीं पे आ गए आंखों से टूटकर आंसू, बुरी खबर है  फरिश्ते खताएं करने लगे।



सूखा ग्रस्त और ओलों के आक्रमण से पस्त, नक्सलवाद से त्रस्त जहां कानून व्यवस्था पूरी तरह हो चुकी हो ध्वस्त। ऐसे राज्य की महापंचायत में मंगलवार को आखिरकार अपने विधायकों का मंगल कर ही दिया। अंधा बांटे रेवड़ी आप-आप ही देय की तर्ज पर प्रदेश की महापंचायत में विधायकों की वेतन -भत्ते की वृध्दि को अमली जामा पहना दिया गया और राज्य की 2.55 करोड़ जनता मूकदर्शक  बनी रह गई। अब  प्रदेश के इन कर्णधारों की कारस्तानी की बात भी लगे हाथ कर ही ली जाए। राज्य के अधिकांश विधायक अपनी निधि तक का उपयोग नहीं कर पाते हैं। तमाम ऐसे विधायक है जो अपने क्षेत्रों में कितनी बार जाते है ये वहां की जनता अच्छी तरह से बता सकती है। दोहरी आपदा के बावजूद भी हमारे मुख्यमंत्री ने केंद्र से महज 6 हजार करोड़ रुपए राहत मांगी थी। किसानों के मुआवजे के लिए। उसकी जगह केंद्र सरकार ने उनको महज 12 सौ रुपए टिका दिए गए। अब ऐसे में राज्य सरकार इस संकट में पड़ी है कि किसानों को मुआवजे का भुगतान आखिर करे तो कहां से करे?
एक ओर मितानिन, रोजगार सहायक, तृतीय वर्ग कर्मचारी, सफाई कर्मचारी और शिक्षाकर्मी अपने-अपने वेतन के लिए घिघिया रहे हैं। इससे शर्मनाक बात भला और क्या हो सकती है कि एक शिक्षाकर्मी ने बाकायदा मजदूरी करने जाने के लिए अपनी शाला में अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र तक दिया, और प्रधानाध्यापक ने उसकी छुट्टी भी स्वीकृत कर दी।
 इस राज्य में कानून की तो बात ही न की जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। जहां स्वास्थ्य मंत्री की गाड़ी पर उल्टा तिरंगा लटकाया जाता है और दो-दो बार मामले सामने आने के बाद भी पुलिस कुछ नहीं बोलती। वही छत्तीसगढ़ की जांबाज पुलिस एक हेलमेट नहीं पहनने वाले युवक को पीट-पीटकर उसकी हाल बिगाड़ देती है, और क्षेत्र के विधायक आज तक कान में तेल डाले बैठे हैं। अब राज्य सरकार ऐसे लायक विधायक का भला आखिर वेतन न बढ़ाती तो क्या करती? आखिर जनता की इतनी ज्यादा सेवा जो करते हैं। इनकी सेवाओं का ही त$काजा है कि राज्य का पीडीएस पूरे देश में सराहा जा रहा है, मगर उसकी असल ह$कीकत ये है कि अधिकांश गरीबों के राशन कार्ड किसी न किसी रसूखदार की तिजोरी में पड़े होते हैं। यही नहीं इन्हीं विधायकों की कृपा से तमाम बंगलेधारियों के गरीबी रेखा के कार्ड आज भी बने हुए हैं। अधिकारियों की भला क्या मज़ाल जो जाकर झांक भी लें उस ओर?
जिस विधान सभा में 79 विधायक करोड़पति हों, जो राज्य इतने सारे झंझावात झेल रहा हो। तीन महीने में सवा सौ से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हों, अधिकारियों और कर्मचारियों को भी समय पर वेतन का भुगतान न हो पर रहा हो। उस राज्य में विधायकों का वेतन भत्ता बढ़ाया जाना आखिर कितना जरूरी है? कुल मिलाकर अपने स्वार्थ के लिए राज्य सरकार ने प्रदेश की 2.55 करोड़ जनता के साथ छल किया है। प्रदेश की महापंचायत में जनता के साथ अन्याय किया गया। इसका जवाब छत्तीसगढ़ की जनता उचित समय पर जरूर देगी।

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