कथनी और करनी


विधान सभा के बजट सत्र में सरकार की घोषणाओं और उनके मंत्रियों की गर्जना का दौर जारी है। विपक्ष भी यदा-कदा अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए बहिर्गमन कर चुपचाप श्रोता बना बैठा है। प्रदेश की 2.55 करोड़ जनता बाहर अपने भाग्य को रो रही है। पुरानी राजधानी में लोग नौकरी और तमाम दूसरी समस्याओं को लेकर धरने पर बैठे हैं। पिछले छह महीने से धरना स्थल लगातार ही ऐसे सरकार पीडि़तों के धरने से आबाद है। ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि क्या सरकार और उसके अधिकारी अपना काम ढंग से कर रहे हैं? जाहिर सी बात है कि अगर सारी घोषणाएं शत-प्रतिशत की बजाय 50 फीसदी भी धरातल पर उतरी होतीं, तो राज्य की तस्वीर ही कुछ और होती। समय-समय पर मंत्रियों तक ने मुख्यमंत्री को इस बात की शिकायत की, कि हमारे अधिकारी हमारी ही नहीं सुनते। ऐसे में सीधी सी बात है कि फिर ऐसे अधिकारी भला जनता की क्या सुनेंगे?
प्रशासनिक मशीनरी की बिगड़ी चाल के चलते ही सरकार की गाड़ी खड्ड की ओर बढ़ रही है। जनता के मन में ऐसे अधिकारियों के प्रति आक्रोश पनपता जा रहा है।
ये इस देश का दुर्भाग्य है कि जिस देश में एक 2 सौ रुपए रोज कमाने वाले मजदूर से शाम को उसके पूरे दिन के काम की कै$िफयत मांगी जाती है। तो वहीं जो आदमी देश के खजाने से लाखों रुपए हर महीने लेता है उसकी कै$िफयत लेने वाली कोई मशीनरी नहीं है। जिस लोक की सेवा के लिए ये पूरा तंत्र बनाया गया है, वही तंत्र उसी की कमाई खाकर उसी की नहीं सुनता। ऐसे में शासन-प्रशासन को समयमान वेतनमान के साथ ही साथ उसके काम की भी जानकारी देनी जरूरी हो। हर किसी को काम के आधार पर वेतन का भुगतान किया जाए। इसके साथ ही साथ अगर काम में गलतियां पाई जाएं तो उसी के आधार पर उसके वेतन से नुकसान की भरपाई की जाए। इससे एक ओर जहां सरकारी मशीनरी ईमानदार बनेगी वहीं उसकी काम करने की ताकत का भी पता चलता रहेगा। इसके लिए हर सरकारी संस्थान में बायोमीट्रिक अटेंडेंस मशीन लगाई जाए, ताकि अधिकारियों के बेसमय आने-जाने पर रोक लगाई जा सके। अगर सरकार वास्तव में सुराज को लेकर गंभीर है तो उसको ये सारे काम पूरी गंभीरता के साथ करने चाहिए, ताकि जनता की आस्था लोकतंत्र में बनी रहे।

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