भारी पड़ते कुछ अधिकारी

कटाक्ष-

निखट्टू
किसी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ को प्रशासनिक अधिकारी चला रहे हैं। उस वक्त तो बात मजाक में कही गई थी। अब ये बात बिल्कुल समझ में आने लगी। आईएएस अफसरों की अफसरशाही आए दिन चर्चा में रहती है। जब कि असलियत तो ये भी है कि काम के नाम पर धड़ाम होने वाले ये अधिकारी छोटे अधिकारियों पर तो गरजते हैं, और मंत्रियों की बिल्कुल भी नहीं सुनते। इसी का नतीजा है कि राज्य के एक कद्दावर मंत्री पिछले कई महीनों से राज्य के कुछ प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत करना तक बंद कर चुके हैं। इसके अलावा कुछ सांसदों की भी यही शिकायत है। पत्रकारों पर बरसने वाले तो तमाम आईएएस अफसर राज्य में जमे पड़े हैं। जब कि प्रदेश के मुखिया का कहना है कि हम निष्पक्ष पत्रकारिता की हिमायत करते हैं। प्रमुख विपक्षी दल और राज्य के तमाम तबके के लोग भी पत्रकारिता का सम्मान करते हैं। तो ऐसे में ये सवाल भी जायज है कि क्या कानून किसी प्रशासनिक अधिकारी को ये अधिकार देता है कि वो किसी पत्रकार को धमकाए अथवा उसके साथ बदसलूकी करे?
हमारे यहां दर्शन शास्त्र में कहा गया है कि अति सर्वत्र वर्जयेत, अर्थात किसी भी चीज की अति भली नहीं होती। राज्य में कुछ लोग  अब अति करने लग गए हैं। उनको भी इस बात को समझना होगा। हम किसी की निजी जिंदगी में झांकने वालों को पत्रकार नहीं मानते। पत्रकारिता की एक मर्यादा है और पत्रकार को उसमें बंधकर रहना चाहिए। तो वहीं अधिकारियों को भी अपनी ही मर्यादा में रहना चाहिए। अगर दोनों ही वर्ग मर्यादा में रहेंगे। तो टकराव अपने आप समाप्त हो जाएगा।
फाइलों के फलसफे पलटने और उसको अटकाने और  आवेदकों को भटकाने के गुण तो कोई इन अधिकारियों से सीखे।
तमाम जरूरी काम अटके हुए हैं और साहब आराम से क्लब में ऐश कर रहे होते हैं। अभी हाल ही में तेलीबांधा तालाब से पानी चोरी जिस क्लब ने की थी। उसमें प्रशासनिक अधिकारियों का आना-जाना रहता है। हम ये तो नहीं कह सकते न कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे? मगर इतना तो जरूर कहेंगे कि प्रशासनिक पद पर रह कर ऐसे काम किसी भी भद्र और ईमानदार अधिकारी को शोभा नहीं देते। मामले और भी हैं मगर हम समय की मर्यादा में रहते हुए हम अब रुख़्सत हो रहे हैं। तो कल तक के लिए जय...जय।

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