विभाग से लेकर जंगल तक आग... भाग..रे भाग





 भ्रष्ट अफसरशाही का इससे बड़ा त$काजा और क्या होगा कि एक ओर मुंगेली और अचानकमार के जंगलों में आग लगी है।  तो दूसरी ओर सातवां वेतनमान लेकर वन विभाग के अधिकारी चैन की वंशी बजा रहे हैं। दहकते जंगलों और मारे जा रहे वन्यजीवों तक तो गनीमत थी। यहां तो वन विभाग का मुख्यालय अरण्य भवन भी आग की चपेट में आ गया। जहां उठी संदेहाग्रि की लपटों ने पता नहीं कितनी भ्रष्टाचार की फाइलों को लील लिया। अब अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि जब पूरा महकमा ही इतना गैर जिम्मेदार है तो फिर इस राज्य की व्यवस्था का तो भगवान ही मालिक है। ऐसे में तो छत्तिसगढिय़ा तो यही कहेगा न कि विभाग से लेकर जंगल तक आग... भाग... रे .. भाग !
एसडीएम से लेकर वन विभाग के सचिव तक कुछ बोलने को तैयार नहीं
सवाल सुनते ही तत्काल चीफ कंजर्वेटिव अधिकारी तपेश झा ने बंद किया मोबाइल
लपटों ने लपेटा जंगल और अधिकारी गा रहे मंगल गीत

मुंगेली/बिलासपुर। मुंगेली और अचानकमार जंगल के बफरजोन को पिछले दस दिनों से आग की भयावह लपटें लीलती जा रही हैं। चारों ओर भयंकर धुएं का गुबार आसमान पर छाया हुआ है। जहां बाघों और चीतल, सांभर और वनभैसे जैसे तमाम जीवों की रिहाइश मानी जाती है। वहां आग की ऊंची-ऊंची लपटें दिखाई दे रही हैं।
वातानुकूलित कमरों में बैठे जवाबदेहों के जवाब -
तो वहीं प्रशासनिक अमले को इससे कोई लेना देना नहीं है। बिलासपुर के एसडीएम केडी. कुंजाम ने इस मामले में कुछ भी बताने से असमर्थता जाहिर की है। उनका कहना है कि मैं इस मामले में कुछ भी नहीं बता सकता। ये वन विभाग का मसला है वो समझें। आप इसके लिए वन विभाग के अधिकारियों से बात कीजिए।
तो वहीं वन विभाग के सचिव आर पी. मंडल ने  भी इस मामले में पूरी अनभिज्ञता जाहिर कर दी। उन्होंने अलबत्ता ये कहा कि इसकी जानकारी आप चीफ कंजर्वेटिव ऑफिसर तपेश झा से ले लें।
तपेश झा से  जब इस संदर्भ में सवाल दागा गया तो उन्होंने सवाल सुनने के तत्काल बाद ही फोन बंद कर दिया। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या ऐसी ही प्रशासनिक मशीनरी के भरोसे राज्य की 2.55 करोड़ जनता का काम चल रहा है?
सुराज पर भी सवालिया निशान-
सुराज के दौरे पर निकले मुख्यमंत्री को तो सबसे पहले वहां जाना चाहिए जहां वन दहक रहे हैं। जानवरों और जंगली जड़ी-बूटियों का साम्राज्य जल कर राख होता जा रहा है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर इस सुराज का क्या मतलब? जहां ऐसे गैर जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी हों वहां भला जनता को क्या राहत मिल सकती है, सिवा आहत होने के?
उत्तराखंड से भी नहीं ले रहे सीख-
उत्तराखंड के जंगलों पर लगी आग को काबू पाने के लिए एक ओर जहां पूरा प्रशासनिक अमला पिला पड़ा है। एमआई-17 वी-5 हेलीकॉप्टर में बांबी बकेट लगाकर आग बुझाई जा रही है, तो वहीं छत्तीसगढ़ के मुंगेली और अचानकमार के जंगलों की आग से प्रशासन जानबूझकर अंजान बनने का नाटक कर रहा है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या ऐसे लोगों को उनके पद पर बने रहने का अधिकार है?
वन विभाग के दफ्तर में भी आग-
मंगलवार को रायपुर स्थित वन विभाग के मुख्यालय अरण्य भवन में भी भीषण आग लग गई। इसमें तमाम फाइलें जलकर राख हो गईं। संदेह तो ये भी जताया जा रहा है कि इस आग को भ्रष्टाचार की फाइलों के स्वाहाकरण को लेकर ही लगाया गया था। ऐसी आग रायपुर के कई दूसरे सरकारी दफ्तरों में भी लगाई जा चुकी है। बहरहाल दोनों ही आगों को लेकर प्रशासन और उसके अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं दिखाई देते।
बॉक्स-
भीषण आग से बांस टाल खाक
2 फोटो-आरजेएन-1,2 आग
राजनांदगांव।  केशर नगर स्थित बांस टाल में मंगलवार की रात भीषण आग लगने से लाखों का नुकसान हुआ है। रात 12.30 बजे के आसपास गायत्री स्कूल के पास स्थित एक बांस टाल में अचानक आग लग गई। देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया। दमकल की 8 गाडिय़ों ने 6 घंटे की मशक्कत के बाद पाया आग पर काबू पाया। बांस टाल राजेश कुमार खंडेलवाल की बताई जा रही है। दमकल की गाडिय़ां दुर्ग, भिलाई और डोंगरगढ़ से भी बुलाई गई थीं।  आगजनी से 30 से 40 लाख के नुकसान का अनुमान है। घटना में कोई जनहानि नहीं हुई है। आग लगने का कारण पता नहीं चल पाया है।

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