मर्ज बनता बैंकों का कर्ज




किसी का कल संवारा जा रहा है, हमें किश्तों में मारा जा रहा है।


एक ओर देश में जहां बैंकों के कर्ज से दबे किसान बैंक अधिकारियों की धमकियों से तंग आकर आत्महत्याएं कर रहे हैं। तो वहीं मोटी रकम दबाए बैठे उद्योगपति देश से चुपचाप पलायन कर रहे हैं। अब बैंक और सरकार मिलकर उनकी संपत्ति का खरीददार खोजते फिर रहे हैं। सवाल तो ये है कि इतना मोटा कर्ज एक दिन में तो नहीं हुआ होगा? उस वक्त ये बैंक और उनके तमाम जिम्मेदार अधिकारी क्या कर रहे थे? जाहिर सी बात है कि हमने इसको लेकर गंभीरता नहीं दिखाई लिहाजा ऐसे नतीजे सामने आने शुरू हो गए। दुर्घटना घट जाने के बाद जागने की आदत पाल चुके सरकारी विभागों ने भी अब लकीर पीटनी शुरू कर दी है। अब जाकर ईडी ने ब्रिटेन पलायन कर चुके उद्योगपति विजय माल्या के सारे शेयर फ्रीज़ कर किए। सवाल तो यही है कि ये कार्रवाई तीन साल पहले क्यों नहीं की गई?
छत्तीसगढ़ के किसानों पर सहकारी बैंकों का नौ हजार करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। तो वहीं प्रदेश में दस से ज्यादा किसानों ने महज इस लिए आत्महत्या कर ली कि उनको बैंक के अधिकारियों ने कर्ज वसूली के नाम पर इतना प्रताडि़त किया कि इन किसानों को आत्महत्या तक करनी पड़ी।
कहने का तत्पर्य ये कि अगर कर्ज अदायगी की किश्तें बैंकों को समय पर मिलती रहती तो आज ये दिन न तो बैंको को देखने पड़ते और न ही उद्योगपतियों को।
विदेशी उद्योगपतियों को जरूर बुलाएं मगर भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडर्सन के मामले को भी ध्यान में रखना जरूरी होगा। तमाम विभाग अपने- अपने काम अगर सही ढंग से नहीं करेंगे तो ऐसी समस्याओं को रोका नहीं जा सकेगा। लिहाजा ये जरूरी है कि सारे काम समय पर किए जाएं चाहे वो वसूली हो या फिर किसी के ऋण की मंजूरी। सरकार को देश के उद्योगपतियों पर भी निगाह रखनी होगी। ऐसा न हो कि देश वाले उद्योगपति विदेश में और विदेश वाले देश में जम जाएं?

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