विकास की आड़ में बरबादी का खेल



बंजर जमीन पट्टे पर जो दे रहे हैं आप, ये रोटी का टुकड़ा है मियादी बुखार में।


विकास की आड़ में बरबादी का खेल किस कदर खेला जा रहा है इसका नमूना राज्य के तमाम जिलों में देखने को मिल रहा है। ठेकेदार, अभियंता और नेताओं की तिकड़ी ने पूरी व्यवस्था को  मटियामेट कर दिया है। निर्माण चाहे किसी भी तरह का हो, चलती इन्हीं की है।
नया मामला राजनांदगांव में सामने आया है जहां पहले तो  फुट ओवर ब्रिज बना दिया जाता है। उसके पूर्ण होने के साथ ही साथ उसी के पास एक फ्लाई ओवर ब्रिज का निर्माण भी प्रस्तावित कर दिया जाता है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि तब फिर उस फुट ओवर ब्रिज का क्या औचित्य रह जाएगा?
यहां नियम कायदे की बात करना भी बेमानी है। यहां की बिल्डिंग्स को सीमेंट सिर्फ चटाया जाता है। इसके तमाम नमूने भी समय-समय पर देखने को मिलते आ रहे हैं। कई स्कूलों की छतें निर्माण के बाद ही टपक पड़ीं। फ्लाईओवर ब्रिज में उद्घाटन के पहले ही दरारें दिखाई देने लगती हैं। सड़कों की हालत तो पूछिए ही मत। इनका तो आलम ये है कि एक कुदाल मारी नहीं कि धरती मां के दर्शन हो जाती हैं। अब ऐसी सड़क पर हम कितने सुरक्षित हंै इसका अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है। वैसे भी हमारे देश में ये कोई नई बात नहीं है। यह देश का हर छोटा-बड़ा आदमी जानता है। सड़कों के निर्माण के नाम पर हरियाली को भी जमकर नुकसान पहुंचाया जा रहा है। ऐसे में समस्या तो इस बात की है कि एक ओर जहां वातावरण का तापमान बढ़ता जा रहा है।  तो वहीं वर्षा भी प्रभावित हो रही है। सरकार इसको लेकर विचार मंथन कर रही है। अब ऐसी सरकार को कौन समझाए कि हुजूर सब आप ही का किया धरा है।
सरकार और उसमें बैठे लोगों की कमी ये है कि कोई भी योजना शुरू करने के पहले उसके सारे पहलुओं पर विचार नहीं किया जाता। इसके अलावा न तो उसके मुनाफे और नुकसान का आंकलन किया जाता है। इसके अलावा उसके बनने से वहां के स्थानीय लोगों को किन समस्याओं से जूझना होगा? निर्माण कार्यों की गुणवत्ता के नाम पर तो जो खेल- खेला जा रहा है। इसको तत्काल बंद कर देना चाहिए। न्यायिक प्रक्रिया को तेज किया जाना चाहिए। इससे भी लोगों के मन में एक भय बना रहेगा।

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