सियासी समरसता पर सवाल


बात बेबात नहीं होती है बात हीरा है बात मोती है, बात हर बात को नहीं कहते बात मुश्किल से बात होती है।



लोक सुराज अभियान में मठपुरैना पहुंचे प्रदेश के कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने जब कांग्रेसी विधायक सत्यनारायण शर्मा और फिर महापौर प्रमोद दुबे की जय-जयकार करवाई, तो इससे तमाम सवाल निकल कर अपने आप उठ खड़े हुए। प्रदेश की सियासत के दो ध्रुव माने जाने वाले भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रदेश अध्यक्ष ही इस मामले पर कुछ कहने से बचते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस के साथ सत्तापक्ष की नूराकुश्ती किसी से भी छिपी नहीं है। अभी हाल में ही अंतागढ़ टेप कांड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इससे पहले भी कई मौकों पर इनका भीतरी तालमेल सामने आता रहा है। उधर दिल्ली में बैठे कांग्रेस के आलाकमान अपने इन्हीं पिटे मोहरों से मैदान मारने का ख्वाब पाले पड़े हैं। ऐसा नहीं है कि उनको इसकी खबर न हो? कांग्रेस आलाकमान को अच्छी तरह से खबर है कि वहां क्या हो रहा है? सवाल तो ये भी उठता है कि अगर यही सब करना था तो फिर इतनी दुश्मनी क्या सिर्फ जनता को बेवकूफ बनाने के लिए की जाती है? क्या राज्य के राजनीति करने वाले जनता को आज भी बुध्दू समझते हैं? जनता भी अब पहले वाली नहीं रही। वह सब कुछ समझती है। ऐसे में ऐसी सियासत करने वालों को ये बात भी अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि ऐसी समरसता कभी-कभी भारी पड़ सकती है।  सवाल तो ये भी उठता है कि अगर यही सब कुछ करना है तो फिर जैसे महात्मा गांधी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से कहा था कि अब देश आजाद हो गया, लिहाजा कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए।  देश में एक ही सियासी पार्टी होगी,पर ऐसा हुआ नहीं। यदि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सही किया तो फिर उन तमाम कार्यकर्ताओं की भावनाओं का क्या होगा जो पार्टी को ही अपना सर्वस्व मानते हैं?
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि बातन हाथी पाइए और बातन हाथीपांव। अर्थात बात अच्छी की तो कोई राजा प्रसन्न होकर आपको हाथी दे सकता है। और अगर बात अच्छी नहीं हुई तो जनता मार-मार कर पैर को इतना फुला देगी कि लगेगा कि हाथी पांव हो गया है।  बात को बात ही बनी रहने दी जाए उसका बतंगड़ न बने ऐसी कोशिश राजनेताओं को करनी चाहिए।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव