-वन विभाग पहुंची जंगल की आग
जुर्म करना और इल्ज़ाम किसी पर धरना, ये नया नुस्खा है बीमार भी कर सकता है।
मुंगेली से लेकर अचानकमार के बफर जोन तक में लगी भयानक आग अब रायपुर के वन विभाग तक आ पहुंची। असल में सरकारी दफ्तरों में आग का ट्रेड काफी पुराना है। जहां भी भ्रष्टाचार के मामलों की फाइलों की तादाद लंबी होती है, वहां ऐसी संदेहाग्रि ही अधिकारियों का सहारा बनती है। सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती। ऐसी आग कई दफ्तरों में पिछले सालों से लगती आ रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आगे भी इसका क्रम जारी रहेगा। दरअसल जब हिफाजत से ज्यादा काला-पीला काम जिस भी विभाग में बढ़ता है तो वहां फिर फाइलों का अंबार लगना शुरू हो जाता है। ऐसे में समूचे विभाग पर ही सवालिया निशान लगने की आशंका बढ़ जाती है। वैसे भी राज्य के वन विभाग के दामन हमेशा से ही दागदार रहे हैं। चाहे वह इमारती लकडिय़ों या फिर बाघों की खाल और उसके अवशेषों तथा तेंदुए की खाल अथवा सांपों की तस्करी का हो। आलम ये है कि सरकारी दावों को दरकिनार करते हुए तस्करों का कुकर्म धड़ल्ले से जारी है। मामला जैसे ही मीडिया के संज्ञान में आता है विभाग उस पर जांच की चादर डालकर ढंक देता है। अब आखिर कितनी चादरें विभाग लाए रोज-रोज। उधर फाइलों के बोझ से आफिस की जगह कसनी शुरू हो जाती है। ऐसे में इन लोगों ने एक सहज उपाय निकाला। ऐसी फाइलें जहां भी ज्यादा हो जाएं एक दिन चुपचाप उनका स्वाहाकरण कर दिया जाए। उसके बाद तो संकट कटै मिटे सब पीरा।
सरकार को चाहिए कि भ्रष्टाचार के हर मामले का तत्काल डिजिटलाइजेशन भी करवा कर रख ले। जिनके खिलाफ जांच लंबित हो उन पर भी निगरानी रखी जाए। जहां महत्वपूर्ण फाइलें रखी गई हों वहां सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए जाएं ताकि ऐसी घटनाओं का सुरा$ग आसानी से मिल सके। इन सबसे ज्यादा अहम बात है कि अधिकारियों को अपने काम का तरीका बदलने के साथ जांच जैसे मामलों में निष्पक्षता और तेजी लाई जाए, ताकि तत्काल निस्तारण होने से भी ऐसी फाइलों की बाढ़ कम हो जाएगी।
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