सुराज का बेसुरा साज


तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें य$कीन नहीं।


सुराज का साज बजा रहे प्रदेश के सुखिया मुखिया के इस महायज्ञ में कुछ लोगों ने विघ्र डालना शुरू कर दिया है। तो वहीं भाजपा नेताओं के कारनामों के चलते लोगों का मन अब सत्ता पक्ष से खट्टा होने लगा है। पिछले दिनों गीदम में नगर पंचायत अध्यक्ष ने जिस तरह से गरीब महिला की दुकान को पैर की ठोकरों से मार-मार कर फेंका। उस वीडियो को जिसने भी देखा, उसका मन तो भाजपा से भर गया। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी में भीतर से सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। लगातार आपसी खींचतान की खबरें भी आती रही हैं। एक ओर पूरा राज्य प्यास से हाहाकार मचा रहा है। तो प्रदेश के मुखिया पेड़ के नीचे चौपाल लगा रहे हैं। भगवान जाने इससे बेसुरा और बेताला राग मैंने अपनी जिंदगी में नहीं सुना था। प्रदेश में काम कम ड्रामा ज्यादा हो रहा है। सिर्फ प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों की कॉपी पेस्टिंग करने से शासन नहीं चलने वाला। आंकड़ों के घोड़ दौड़ाने वाली सरकार और उसके निरंकुश अहलकारों की पूरी टोली, मजे से रुपए की होली खेल रही है। ऐसे में अगर कोई मर रहा है तो वो है राज्य का किसान व गरीब इंसान। जिसको सुविधाओं के नाम पर आज सीएम से तक आश्वासन ही मिलते आ रहे हैं। अलबत्ता जिम्मेदार अधिकारियों से घुड़कियां और चपरासियों की धमकियां तो कई-कई बार मिल चुकी हैं। जानकारों का तो ये भी कहना है कि सीएम अक्सर वहां जाते हैं जहां समस्याएं होती ही नहीं। अधिकारी पहले से पहुंच चुके होते हैं और कुछ लोगों को पट्टियां पढ़ाकर सीएम के सामने कर देते हैं। फोटो खिंची और उसके बाद सीएम ने माइक संभाला और कर दी ताबड़तोड़ घोषणाएं। इसके बाद जनसंपर्क वाले खबर बनाएं और परोस  दिया मीडिया के आगे।
वहां वातानुकूलित कमरों में बैठे विद्वान सह संपादकों ने उसी को एथेंटिक मानते हुए ज्यों का त्यों छाप मारा। आलम ये है कि राजधानी के 99 प्रतिशत अखबारों की भाषा तक में प्रशासनिक शब्दावलियों के शब्द तक नहीं हटाए जाते। ऐसे अखबारों को अखबार कम प्रशासनिक पर्चा कहना ज्यादा श्रेयष्कर होगा।
ऐसे में सरकार और उसके मुखिया को चाहिए कि वे अब तो कम से कम बिना फुल स्टॉप और कॉमा के चलने वाला ये ड्रामा बंद कर दें। इससे छत्तीसगढ़ की जनता का कल्याण होगा विश्वास रखें। जितना पैसा इसमें व्यवस्था के नाम पर हवन किया जा रहा है। उसको असल कामों में लगाया जाए। गरीबों के पैसों पर इस तरह का नंगा नाच बंद होना चाहिए, तभी असल में सुराज की कल्पना की जा सकती है।

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