झीरम के छालों पर वादों का नमक
झीरम के घाव पर अधिकारियों के ताव और कोरे दावों का नमक मला गया। जो भी यहां आया सिर्फ दावे करके चला गया। ऐसे में यहां का रहने वाला आदिवासी इन लोगों द्वारा छला गया। गनतंत्र के बीच जीने को मजबूर आदिवासी भी इसी देश के नागरिक हैं। उनको भी खुली हवा में सांस लेने का अधिकार है। सियासी दावों की जमीनी ह$कीकत तो ये है कि यहां के पीडि़त लोगों का दर्द तक बांटने वाला कोई दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता। आज फिर वही तारीख है 25 मई, जिस दिन नक्सलियों के हमले में यहां कांग्रेस के कद्दावर नेताओं सहित 29 लोगों की जान गई थी। इस घटना में दिग्गज कांग्रेसी विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल समेत 29 लोगों की मौत हुई थी। घटना में दरभा क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ता भागीरथी कश्यप, सदा नाग, राजकुमार उर्फ राजू व मनोज जोशी की मौत हो गई थी। आज भी यहां तमाम लोग आए हैं। इस बार कोई दूसरा मुखौटा लगाए हैं। तीन साल में इनको याद आ रहा है इनका संकल्प। सवाल तो ये है कि क्या इससे हो सकेगा आदिवासियों का काया कल्प?
गनतंत्र बीच सहमें आदिवासी, तीन साल में भी नहीं बदली बस्तर की तस्वीर
रायपुर। झीरम हमले के बाद वहां जो भी गया वादों की झड़ी लगा दी। सुनहरे ख्वाब दिखाए और आगे निकल गए। बचे रह गए तो बस्तर में वही आदिवासी। इनके दोनों और गनतंत्र है, यहां बोली से पहले ही गोली चल जाती है। सरकार और नेताओं के तमाम दावे आज तक धरातल पर नहीं उतर सके हैं। गांवों में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, सुरक्षा, बिजली और पानी जैसी समस्याएं मुंह फाड़े खड़ी हैं।
आदिवासियों के आगे कुआं और पीछे खाई: छविंद्र
बस्तर टाइगर कहे जाने वाले महेंद्र कर्मा के पुत्र छविंद्र कर्मा ने हमारी सरकार को बताया कि बस्तर में आदिवासियों की हालत खराब है। इनके आगे कुआं और पीछे खाई वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
आदिवासियों के दोनों ओर मौत-
श्री कर्मा ने बताया कि आदिवासियों के दोनों ओर मौत है। पुलिस की सुनें तो नक्सली मार दें, नक्सलियों की सुनें तो पुलिस। और तो और गनतंत्र इन पर इस कदर हावी है कि इनको डरा-धमका कर आत्मसमर्पण कराया जा रहा है। ऐसे में सवाल तो यही है कि बस्तर में हम किस लोकतंत्र की बात करते हैं? कहां है बस्तर में लोकतंत्र?
सरकार कर रही आदिवासियों से सौतेला बर्ताव-
छविंद्र कर्मा ने आगे कहा कि राज्य सरकार आदिवासियों से सौतेला बर्ताव कर रही है। सुविधाओं के नाम पर उनको असुविधाएं दी जा रही हैं। तमाम ऐसे गांव हैं जहां आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। सुराज की सरकार को ललकारते हुए उन्होंने कहा कि अगर दम है तो इन आदिवासियों का विकास करके दिखाएं। सुकमा को स्मार्ट सिटी बना कर दिखाएं। रायपुर को तो बनाना आसान है।
क्या है झीरम के हमले के बाद की ह$कीकत-
अब कोई नहीं आता सदाराम के घर-
छिंदावाड़ा निवासी दिवंगत कांग्रेस सदस्य सदा राम नाग की दो पत्नी हैं। लिहाजा उनकी मौत के बाद शासन से मिले मुआवजा राशि 13 लाख रुपए का फूलवती ने अपनी सौतन बुधरी के साथ बंटवारा किया। सदा के बूढे पिता जलदेव ने बताया कि उनका बेटा कांग्रेस का सक्रिय सदस्य था लेकिन उसकी मौत के बाद कोई उसके घर हालचाल लेने नहीं आते हैं। शासन से उसकी बड़ी पोती एमिमा को रसोईया पद पर नियुक्ति दी गई है। स्थानीय विधायक व जनपद सीईओ ने उनके पांच पोते-पोतियों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए बाहर प्रबंधन करने का वायदा किया था, जो आज तक पूरा नहीं हुआ। एमिमा की छोटी बहन शबीना व ज्वाला कक्षा नवमीं, भजन सिंह कक्षा छठवीं तथा यमुना दूसरी कक्षा में गांव के स्कूल में ही पढ़ते हैं।
वादाखिलाफी का अफसोस-
इसी गांव के दिवंगत कांग्रेस सदस्य भागीरथी कश्यप की बेवा इच्छावती का कहना है कि उसे पति की मौत के बाद रसोईया के पद पर संविदा नौकरी दी गई है। किसी तरह घर का गुजारा-चल जाता है। सीएम डॉ. रमन सिंह ने गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान मकान व जमीन देने का आश्वासन दिया था जो आज तक पूरा नहीं किया गया है, उसे इसका अफसोस है। उसके तीन बच्चों के पढ़ाई-लिखाई की बेहतर व्यवस्था नहीं हो पा रही है। पति की मौत के बाद मिले मुआवजे राशि का बड़ा हिस्सा उसने एफडी करवा दिया है ताकि बच्चों के काम आ सके। मकान व जमीन के लिए उन्होंने प्रशासन से मौखिक आग्रह किया है।
बड़ी बहन उठा रही घर का सारा खर्चा-
दरभा निवासी दिवंगत मनोज जोशी की मां रमा जोशी बेटे के मौत के बाद से ही बीमार रहती हैं। उनके पति पहले ही गुजर चुके हैं। झीरम घटना में जवान इकलौता बेटा भी चला गया। घटना के एक माह पूर्व ही उसने मनोज की शादी रचाई थी। उसकी मौत के बाद शासन से मिले मुआवजे राशि को लेकर बहू अपने मायके चली गई।
अब रमा का घर उसकी बड़ी बहन सूरजमनी अपने पति के पेंशन राशि से चला रही है। सूरजमनी ने बताया कि उसकी बहन का उपचार रायपुर में चल रहा है। पुत्र के निधन के बाद उसका स्वास्थ्य दिनों दिन गिरता जा रहा है। आर्थिक समस्या के चलते उनके घर का एक हिस्सा भी गिर गया है।
माता-पिता का सहारा-
दरभा निवासी दिवंगत राजू उर्फ राजकुमार की मां का सहारा उसके बूढे पिता हैं। राजू टैक्सी में हेल्पर का काम करता था। वह कांग्रेसियों के काफिले में यूं ही घूमने चला गया था। नक्सलियों के ब्लास्ट में फंसकर उसकी मौत हो गई थी। राजू की मां ताराबाई के पति स्वर्गवासी हो चुके हैं।
इकलौते बेटे को खोने के बाद वह अपने मां-बाप के साथ रहकर जीवन यापन कर रही है। उसने बताया जवान पुत्र की मौत के बाद उसका सहारा ही टूट गया है। शासन की ओर से संविदा रसोईया की नौकरी दी गई है। किसी तरह जीवन चल रहा है। उसने शासन से किसी प्रकार की अपेक्षा न होना बताया।
बॉक्स-
भावुक हुए अजीत जोगी, भर्राया गला-
झीरम घाटी कांड की तीसरी बरसी पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने हमारी सरकार को बताया कि इसके पीछे भाजपा सरकार की साजिश थी। एक ओर जहां राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सुरक्षा में एक हजार जवान तैनात थे। तो वहीं परिवर्तन यात्रा को पर्याप्त सुरक्षा मुहैय्या कराई गई। लिहाजा ये घटना हुई। इतनी बात करते -करते श्री जोगी का गला रुंध गया....थोड़ी देर की चुप्पी के बाद फिर नार्मल हुए और कहा कि हम उनकी शहादत को जाया नहीं होने देंगे।
वर्जन-
झीरम घाटी की तीसरी बरसी पर मैं अपनी और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की तरफ सभी शहीदों को श्रध्दांजलि अर्पित करती हूं। शहीदों के परिजनों के साथ हमारी संवेदनाएं हैं, हम हमेशा उनके साथ है। जब भी उनको जरूरत महसूस होगी वे हमें अपने करीब पाएंगे।
डॉ. रेणु जोगी
विधायक
कांग्रेस
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