बात और करामात
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में, मैं जब भी देखता हूँ आंख बच्चों की पनीली है ।
महिला दिवस पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकार की असल ह$कीकत ये है कि करैहा गांव में 8 महीने से विधवाओं को पेंशन नहीं दी जा रही है। इसके अलावा वहां की 22 परित्यक्ताओं का आवेदन भी सचिव की आलमारी में पिछले 4 सालों से बंद है। ऐसे में सबसे बड़ी बात तो यही है कि क्या ऐसे ही सुराज आएगा? प्रदेश के सुखिया मुखिया के सबसे कद्दावर माने जाने वाले पंचायत एवं स्वास्थ्य तथा संसदीय कार्य मंत्री अजय चंद्राकर के विधान सभा क्षेत्र का ये मामला बताया जा रहा है। वैसे भी महिलाओं को लेकर श्री चंद्राकर काफी विवादों में रहे हैं। ऐसे में ये नया मामला उनकी मुश्किलें बढ़ाने वाला हो सकता है। सुराज लाने का दावा करने वाली सरकार की बात और करामात का ये अंतर निकट भविष्य में भारी पडऩे वाला है। जनता का मोह धीरे-धीरे ऐसे लोगों से भंग होता जा रहा है। गांव की ये असहाय महिलाएं लगातार सचिव के घर तो कभी दफ्तर का चक्कर लगा रही हैं। इनको यहां से धमका कर भगा तक दिया जाता है। लगातार मानसिक प्रताडऩा झेलने से महिलाओं को काफी कष्ट पहुंचा है। सरकार और उसके अहलकारों के लिए ये कोई नई बात नहीं है। उनकी आदत पड़ चुकी है ऐसे लोगों को अपने घरों के दरवाजों से खदेडऩे की। ऐसे में लोकतंत्र की बात करने वाले तथाकथित बुध्दिजीवियों से सीधा सा सवाल तो यही है कि क्या इसी लोक को संविधान में सबसे मजबूत माना गया है। जिस तंत्र को उसकी सेवा का जिम्मा दिया गया था वो आराम से भरपेट मेवा खा रहा है। जरूरत पडऩे पर उसी लोक को लतिया रहा है। इसके बावजूद भी तमाम मौकों पर ये लोग लोकतंत्र की बात करते हैं? ऐसे लोगों को शर्म आनी चाहिए। यही लोग यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता की बात करते हैं?
संवेदनहीनता की सीढिय़ां चढ़ती जा रही सरकार को इस मामले को संज्ञान में लेकर इसके जिम्मेदारों पर तत्काल प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए। नहीं तो निकट भविष्य में इसके घातक परिणाम हो सकते हैं इसमें कोई दो राय नहीं है।
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