मध्यान्ह भोजन शाला में पानी पीते नाला में


जोकारी प्राथमिक शाला में शिक्षा विभाग की जोकरी का नमूना

शिक्षा के नाम पर राज्य में राष्ट्रपति के दत्तक पौत्रों के साथ कैसा भद्दा मजाक किया जा रहा है। इसको अगर देखना हो तो जशपुर के बगीचा ब्लॉक के प्राथमिक शाला जोकारी चले जाइए। यहां छात्रों को ग्रीष्मावकाश में भी मध्यान्ह भोजन शाला से तो पानी मिलता है नाला से।  शिक्षा विभाग की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने और तमाम सुविधाओं के दावे की ये असल ह$कीकत है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर गरीबों की गरीबी का मजाक कब तक उड़ाया जाएगा?

जशपुर। बगीचा ब्लॉक की प्राथमिक शाला जोकारी में सरकार की जोकरी किस कदर जारी है, इसको देखने के बाद ही समझा जा सकता है। यहां बच्चों को मध्यान्ह भोजन तो स्कूल से कराया जाता है मगर पानी पीने के लिए नाले के सहारे छोड़ दिया जाता है। शिक्षा गुणवत्ता वर्ष मना चुके राज्य के शिक्षा विभाग की नक्कारापंथी के कारण मासूमों के स्वास्थ्य से किस कदर खिलवाड़ किया जा रहा है, इसको देखकर शायद ही कोई अपने बच्चे को इस स्कूल में भेजने को राजी हो।
राष्ट्रपति के दत्तक पौत्रों के साथ मजाक-
ऐसा नहीं है कि इस शाला में सारे बच्चे अगड़ी और पिछड़ी जातियों के हैं यहां पढऩे वाले अधिकांश बच्चे कोरवा और बैगा परिवारों से भी आते हैं। वैसे भी बैगाओं को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है। तो ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि क्या राज्य सरकार का शिक्षा विभाग राष्ट्रपति के दत्तक पौत्रों के साथ इतना बड़ा मजाक कर रहा है?
 ढहने की कगार पर है जर्जर भवन-
 इतना ही नहीं स्कूल की इमारत चौबीस घंटे खतरे की चेतावनी दे रही है। स्कूल में पढऩे वाले बच्चों पर हर समय खतरा मंडरा रहा है। बता दें कि इस भवनहीन प्राथमिक शाला को लेकर पंचायत के प्रतिनिधियों ने कई बार आवाज भी उठाई। यहां के सरपंच ने दो जिला मुख्यालय जशपुर में आयोजित होने वाले कलेक्टर जनदर्शन कार्यक्रम में दो बार आवेदन देकर स्कूल के लिये भवन बनवाये जाने की मांग की थी। सरपंच ने पहली बार जून 2014 में और दूसरी बार 29 सितम्बर को जनदर्शन में आवेदन दिया था, लेकिन जनदर्शन कार्यक्रम और कलेक्टर का आश्वासन भी बच्चों की कठिनाई को दूर करने में असफल रहा।
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प्र्रदेश में पानी की रामकहानी-
डिमरापाल में फ्लोराइड का कहर-
जगदलपुर के बकावंड ब्लॉक के डिमरापाल गांव का हाल ये है कि यहां फ्लोराइड युक्त पानी पीने से 90 फीसदी बच्चों के दांत खराब तो वहीं 30 फीसदी लोगों के कूबड़ निकल चुके हैं। 70 प्रतिशत लोगों की हड्डियां विकृत हो चुकी हैं। यहां के अधिकांश बच्चों के दांत काले होकर गल रहे हैं। बच्चों में बुढापे के लक्षण भी दिखाई देने लग रहे हैं।
क्यों हो रहा है ऐसा-
इसके पीछे का कारण ये है कि डिमरापाल की जमीन के नीचे से ही होकर फ्लोराइड वाले पानी का बेल्ट गुजरता है। इसमें निश्चित मानक से दोगुनी मात्रा में फ्लोराइड पाया जाता है।
छह महीने से अटकी है पाइप लाइन-
सरकारी दावे की बात छोड़कर अगर धरातल पर होने वाले काम की बात की जाए तो यहां बिछाई जाने वाली पाइप लाइन का काम पिछले छह महीनों से अटका पड़ा है। ऐसे में मजबूरन यहां के लोगों को फ्लोराइड वाला पानी ही पीना पड़ रहा है।
सूख गया नाला-
ग्रामीण बस्ती से दूर बहने वाले एक नाले का पानी लाकर पीने के लिए उपयोग करते थे, मगर गर्मी बढऩे के कारण वो भी सूख गया। ऐसे में अब लोगों के सामने पेयजल की समस्या है।
सरकार ने क्यों नहीं लगवाए वॉटर एटीएम-
राज्य सरकार के तमाम निगमों ने वॉटर एटीएम लगाने की शुरुआत की थी। जहां 1 रुपए में पांच लीटर शुध्द पानी देने की बात थी। सवाल ये उठता है कि फिर ऐसे क्षेत्रों में ये वॉटर एटीएम क्यों नहीं लगवाए गए? इन वॉटर एटीएम को लगवाया भी उन्हीं शहरों में गया है जहां पहले से ही पानी की कोई किल्लत नहीं है।
वर्जन-
मैं अपने सूत्रों से भी पता लगवा लेता हूं, और जिला प्रशासन को भी वहां पेयजल की उचित व्यवस्था के लिए कह देता हूं।
टीएस सिंहदेव
नेता  प्रतिपक्ष
विधान सभा छत्तीसगढ़

बॉक्स-
शिक्षा मंत्री का फोन सचिव के हवाले-
प्रदेश के मंत्रियों को सरकारी मोबाइल फोन भी अब बोझ लगने लगा है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री से जब इस संदर्भ में उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उनका फोन भी सचिव के हवाले था। संबंधित ने बिना अपना नाम बताए संवाददाता का पूरा नाम और समाचार पत्र का नाम और समस्या दर्ज करने के बाद उनका पक्ष बताने का दावा तो कर दिया। उसके बाद नियत समय पर फोन करने पर कॉल पिक नहीं किया। इससे समझा जा सकता है कि शिक्षा मंत्री कितने जिम्मेदार हैं? सवाल तो ये भी है कि ऐसे मंत्रियों और अफसरों को मोबाइल फोन देने का क्या फायदा?



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